ताज़ा हिलसा मछली की बू वाली गली को छोड़कर
कहीं नहीं जाना चाहती है हवा
बूढ़े लोग पार्क की सैर करने निकल गए हैं
ताकि लग सके उनको भूख
चारदीवारी पर घात लगाए बैठी हैं बिल्लियाँ
क्योंकि छज्जे पर बैठे हैं कौवे।
गाल पर हाथ रखकर
बैठी...है बेवक़ूफ़
हाय...उस लड़की का देखो तो ज़रा छिछोरापन
उसने ख़रीद लिया है अपने लिए एक पात्र 'मेड इन लंदन'
हाथ में आईना लिए—अपनी मूँछे छाँटकर
ख़ुद अपनी ही पीठ ठोंक रहे हैं बाबूसाहब
रास्ते पर रजनीगंधा बेधड़क पुकारती जा रही है—
ख़रीद लो फूल एकाध दर्जन।
बरामदों पर धूमधाम से जम गए हैं अड्डे
आज तो सिर्फ़ चाय ही है, टाय...वाय नहीं।
आसमान कहीं से भी दीख नहीं रहा। अगर दीख रहा तो
याद आती कोई कविता-फविता
तभी एक दमकल गाड़ी घंटे टनटनाती गुज़र गई।
लगता है, पास ही हुआ है कोई हादसा
ग़नीमत है, अभी तक ट्रंक में रखी उसकी ख़ूबसूरत तस्वीर को
दीमक ने चाट नहीं खाया है।
बर्तन माँजने के लिए बहाल नौकरानी जा चुकी है।
नलके से जल उसी तरह गिर रहा है जिस तरह आँखों से पानी
उफ़...आज जो छिछोरापन देखा। तभी तो सयानी गृहिणी
बनी धरती
अपनी साड़ी के पल्लू से हवा झलती हुई बोल उठी...
छि: छि:
- पुस्तक : चाहे जितनी दूर जाऊँ (पृष्ठ 70)
- रचनाकार : सुभाष मुखोपाध्याय
- प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
- संस्करण : 2014
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