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छटपटाता हूँ इसीलिए

chhatpatata hoon isiliye

सोमदत्त

सोमदत्त

छटपटाता हूँ इसीलिए

सोमदत्त

वे कौन-सी ज़बानें हैं

जो मैं बोलूँ

कि समझें सबके मन

कौन-सी गठानें अपनी

जो मैं खोलूँ

कि खुलें सबके मन

कौन-सी कौन-सी वह काया

जिसे धारूँ

कि भेंटे सब मन तन

कि बिना पार किए ये सब बाधाएँ

मैं गूँगा हूँ वाक् का

छूँछा हूँ गाँठ का

अछूत समाज का

शब्दों के मन के रहन के इन रोगों से बेज़ार

छटपटाता हूँ इसीलिए कविता को

कविता कहते लजाता हूँ

स्रोत :
  • पुस्तक : साक्षात्कार 122-124 (पृष्ठ 19)
  • संपादक : मनोहर वर्मा
  • रचनाकार : सोमदत्त

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