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यमुना तट पर छठ

yamuna taT par chhaTh

संजय कुंदन

संजय कुंदन

यमुना तट पर छठ

संजय कुंदन

और अधिकसंजय कुंदन

    इस नदी की साँसें लौट आई हैं

    इसकी त्वचा मटमैली है

    मगर पारदर्शी है इसका हृदय

    इसकी आँखों में कम नहीं हुआ है पानी

    घुटने भर मिलेगा हर किसी को पानी

    लेकिन पूरा मिलेगा आकाश

    छठव्रतियों को

    परदेश में छठ करते हुए

    मन थोड़ा भारी हो रहा है

    महिलाओं का

    दिल्ली में बहुत दूर लगती है नदी

    सिर्फ़ गन्ने के लिए

    या सिंघाड़े के लिए

    लंबा सफ़र तय करना पड़ता है

    अपना घर होता

    तो दरवाज़े तक पहुँचा जाता कोई सूप

    गेहूँ पिसवाकर ला देता

    मोहल्ले का कोई लड़का

    मिल-बैठकर औरतें

    मन भर गातीं गीत

    गंगा नहीं है तो क्या हुआ

    गाँव की छुटकी नदी नहीं है तो क्या हुआ

    यमुना तो है

    हर नदी धड़कती है दूसरी नदी में

    जैसे एक शहर प्रवाहित होता है

    दूसरे शहर में

    पर सूरज एक है

    सबका सूरज एक

    हे दीनानाथ!

    हे भास्कर!

    अर्घ्य स्वीकार करो

    वह शहर जो पीछे छूट गया है

    वह गाँव जो उदास है

    वे घर जिसमें बंद पड़े हैं ताले

    जहाँ कुंडली मारे बैठा है अँधेरा

    वहाँ ठहर जाना

    अपने घोड़ों को कहना

    वे वहाँ रुके रहें थोड़ी देर

    हे दिनकर!

    यह नारियल यह केला यह ठेकुआ

    सब तुम्हारे लिए है

    सब तुम्हारे लिए।

    स्रोत :
    • रचनाकार : संजय कुंदन
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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