छाताधारी
chhatadhari
उड़ान के चरम में
उछाल खाता हूँ
अनंत गहन में
गिरता हूँ
ओऽ!
ओहऽऽ!
और गिरता चला जाता हूँ
(हज़ारों-हज़ार फ़िट) मैं।
खुलती है छतरी
गोले की तरह, मैं
विस्फोट की तरह
अधर में
थम जाता हूँ
तब देखो मुझे
एक पत्ता होता हूँ
सूखा
काँपता
तिरता
अनंत में
तब
लहरों की तरह
ज्वार के बाद
ख़ाली शिराओं के
गुहरों में
लौटता है रक्त
मैं पानी के तल में
उतरते सिक्के की तरह,
उतरता जाता हूँ
मैं थका हूँ
प्रफुल्ल हूँ, प्रमुदित, विभोर, विमुक्त
धरती!
मैं मुझ पर बिछा हूँ
मैं ओस सना हूँ!
- पुस्तक : साक्षात्कार 179-180 (पृष्ठ 101)
- संपादक : प्रभात त्रिपाठी
- रचनाकार : पंकज बिष्ट
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