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चरित्रहीनता : छह

charitrhinta ha chhah

संदीप रावत

संदीप रावत

चरित्रहीनता : छह

संदीप रावत

और अधिकसंदीप रावत

    केवल तुम्हारी याद है

    जो मुझमें

    बहुत धीमे और बहुत

    अचानक से

    आती है

    धुँधलाती है

    कभी-कभी जब तुम्हारी याद

    मुझे भीतर बाहर कहीं नहीं पाती होगी

    तो वह ख़ुद को नहीं पहचान पाती होगी

    मेरी अनुपस्थिति एक काव्यात्मक उपस्थिति है

    जिसकी कोई स्थिति नहीं बताई जा सकती

    सपने नहीं जानते

    और कल्पनाएँ भी नहीं जानतीं कि

    जो कहा नहीं जा सकता

    उसमें डूबा हुआ दिल

    कैसा नज़र आता है

    कैसा?

    जो कहा नहीं जा सकता वैसा

    कैसा?

    जैसे कहीं कुछ हो और जिसे देखने के लिए

    आँखों को चाहिए अनकहे का प्रकाश

    स्पष्टता और धुँध में एक आकस्मिकता होती है जैसे सब कुछ में

    कोई भी जगह

    विचार

    इच्छा

    पीड़ा कभी भी धुँधला सकती है

    धुँधलाहट कभी भी कुछ भी हो सकती है—

    पीड़ा शब्द इच्छा जगह विचार

    लोहे-सी कठोर और ठंडी कहीं चाबुक-सी लचीली कहीं कालिख-सी काली और कहीं

    रेशमी गुलाबी भीगी धुँधलाहट से लोग

    एक दूसरे से अपनी अपनी सुरक्षा करते हैं

    लोग एक दूसरे का अस्पष्ट इंतज़ार करते हैं

    एक दूसरे से अस्पष्ट प्यार करते हैं

    और धुँधली नफ़रत भी

    देश और समाज हमेशा एक धुँध में

    क़ानून लागू करते हैं

    सीमाएं खींचते हैं

    सिर्फ़ एक धुँध के आने-जाने के सिवाय

    जीवन में

    समाजों में

    कभी कुछ और हुआ है क्या?

    जब हम नहीं देख पाते कि हम एक दूजे के आईने हैं तो दूर-दूर तक धुँध पसर जाती है

    बहुत साल पहले मेरे जीवन में ऐसी ही धुँध थी और

    एक स्त्री मुझसे बात करती थी

    हम एक दूजे के दिल की धुँध में झाँकने से डरते थे

    मैं

    काँपती रोती हुई उसकी आवाज़ का बंधक था

    और संरक्षक भी

    उन्ही दिनों सर्द कोहरे में डूबे पेड़ों को गले लगाकर

    मैं बहुत रोया भी और मेरा दिल धीरे-धीरे एक

    अभयारण्य में बदल गया

    जुस्तुजू के रंग

    अपनी आवाज़ों को धीमे से धीमा करते हुए

    एक नीरवता के अँधेरे में तब्दील हो जाते हैं

    उजालों में देखी गई दूरियाँ अँधेरों में

    गहराइयाँ बन जाती हैं

    एक इंसान कभी धुँधलाहट को नहीं देखता

    धुँधलाहट की बदनाम धारणाओं को देखता है

    दुख बार-बार धुँधलाहट को सिर्फ़ उजागर करता है उसे निर्मित नहीं करता

    प्रेम में पुरानी धारणाओं का धुँधलाना एक सवाल है जो जवाब नहीं ढूँढ़ता

    बल्कि उस दिल को ढूँढ़ता है जो लड़खड़ाती भटकती धुँधलाहट को सँभाल सके

    कभी-कभी अचानक एक अस्पष्टता

    जिसके होने की मुझे कोई उम्मीद ही नहीं थी

    आकर मुझे घेर लेती है ताकि मुझे समझ आए कि मैं क्या करता-बोलता-लिखता-सोचता हूँ

    अक्सर यूँ भी होता है कि सबसे धुँधले लम्हों में

    हम बेहद शांत होकर किसी कविता की एक पंक्ति पढ़ते हैं

    और बहुत स्पष्ट महसूस करते हैं कि

    जो चीज़ बदलती बहती रहती है सिर्फ़ वही चीज़ हमारी है

    रंग-ध्वनि-आकृति किसी के लिए नहीं धुँधलाती

    उनकी धुँधलाहट एक खोए हुए दिल के सिवाय भला और किस के लिए हो सकती है

    इंसान को हमेशा इंसान की तरह धुँध को नहीं देखना चाहिए

    कभी किसी चिड़िया की तरह भी देखना चाहिए

    कभी किसी दरख़्त की तरह उससे लिपट जाना चाहिए

    किसी जवाब का इंतज़ार नहीं बल्कि धुँध के छँटने का इंतज़ार करना चाहिए

    दुनिया सिर्फ़ ‘धुँध में’ नुमायाँ होती है वरना कहीं कोई दुनिया नहीं

    मेरे पास निश्चित और स्पष्ट से ज़्यादा अनिश्चित और अस्पष्ट जवाब हैं

    जंगल की एक अनजान पगडंडी ने रास्तों की मेरी समझ और धारणा को जाने कहाँ गुम कर दिया

    यह कहना बहुत मुश्किल है कि दुनिया के पैरों तले कोई ज़मीन है या गहरा परतदार धुँधलका

    हम एक दूजे की केवल स्पष्ट आवाज़ें ही नहीं सुनते बल्कि धुँधली टूटी बुदबुदाती अव्यक्त आवाज़ें भी सुनते हैं जो हमें साफ व्यक्त आवाज़ों से अधिक घेरे हुए रहती हैं और ज़्यादा गहरे छूती हैं

    धुँध वहाँ भी है जहाँ नफ़रत है

    धुँध वहाँ भी है जहाँ प्रेम है

    केवल धुँध पर ही पाँव रखकर तुम्हारे क़रीब तुमसे दूर और परे जाया जा सकता है

    ख़ुद को या किसी दूसरे को प्रेम आँसू हँसी और ख़ामोशी की वजहें बताना

    आँखों में धूल झोंकने जैसा है वजहें

    और मक़सद देखना जीवन की बहुत धुँधली तस्वीर देखना है

    भीतर बहुत कुछ

    केवल इतना ही दिखाई देता है जैसे शहर की दीवारों और अख़बारों पे

    एक स्पष्ट ब्योरे के साथ छपी गुमशुदा लोगों की धुँधली तस्वीरें

    रंग : गेहुँआ/साँवला/गोरा

    उम्र : 45/15/7 के आस-पास

    बाल : भूरे/सफ़ेद/घुँघराले

    कितने ही लोग होंगे जिन्हें मैं इतना ही दिखाई देता हूँगा

    कई बार किसी आवाज़ का धुँधलाना

    मन को साफ़ कर जाता है

    गर दिल में तुम्हारी अस्पष्ट सूरत होती

    तो दिल को कभी कुछ भी साफ़ नज़र नहीं आता

    धुँध सिर्फ़ ख़ुद को महसूस करती है और जानती भी नहीं कि वह किसी के दिल में है

    आवाज़ें इसलिए धुँधलाती हैं क्योंकि उनका ध्यान किसी रास्ते और मंज़िल पर नहीं होता

    और कोई भी रास्ता धुँधलाहटों की आँखों से कभी ओझल नहीं होता

    एक दर्द जो हर मौहूम आवाज़ की तरफ़

    बहना चाहता है उन्हीं आवाज़ों-सा

    अस्पष्ट हो गया है

    मुझ पर तहलील होती हुई सदाओं की संगति का

    गहरा असर है

    ये धुँधलाहट जाने किस साज़ की आवाज़ है

    एक धुँधली ख़ामोशी हमेशा घर टटोलती रहती है

    एक धुँधली ख़ामोशी हमेशा एक क़ंदील थामे रहती है

    एक प्रतीक्षा

    एक मुलाक़ात

    इतनी सूक्ष्म हो जाती है कि कोई भी क्षण

    कभी उतना सूक्ष्म नहीं हो सकता

    कुछ कमी-सी महसूस करता हुआ मैं

    किसी गहरी धुँधलाहट को जी रहा हूँ जो कभी

    एक तीर

    कभी नदी

    कभी किसी अज़ीम क़िले-सी दिखाई देती है

    एक धुँधलाहट

    कभी बुद्ध-सी बैठ जाती है

    कभी सतह से उठते आदमी-सा उठती है

    कभी मीरा-सा गाती है

    कभी मुजरिम तो कभी गवाह की तरह

    कठघरे में खड़ी हो जाती है

    और कहीं मकड़ी-सा जाल बुनती है जिसमें

    सारे स्पष्ट शब्द फँस जाते हैं

    जिस जगह हम मिलते हैं उस जगह

    एक धुँध पहुँचने में कभी भी देर नहीं करती

    और तब तक मौजूद रहती है जब तक

    हम अपने चेहरे नहीं भूल जाते

    गर तुम सारे शब्द भूल चुके हो

    तो तुम यक़ीनन

    मुझे पहचान लोगे।

    स्रोत :
    • रचनाकार : संदीप रावत
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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