चाँद से थोड़ी-सी गप्पें
chand se thoDi si gappen
नोट
प्रस्तुत पाठ एनसीईआरटी की कक्षा छठी के पाठ्यक्रम में शामिल है।
(दस-ग्यारह साल की एक लड़की)
गोल हैं ख़ूब मगर
आप तिरछे नज़र आते हैं ज़रा।
आप पहने हुए हैं कुल आकाश
तारों-जड़ा;
सिर्फ़ मुँह खोले हुए हैं अपना
गोरा-चिट्टा
गोल-मटोल,
अपनी पोशाक को फैलाए हुए चारों सिम्त।
आप कुछ तिरछे नज़र आते हैं जाने कैसे
—ख़ूब हैं गोकि!
वाह जी, वाह!
हमको बुद्ध ही निरा समझा है!
हम समझते ही नहीं जैसे कि
आपको बीमारी है :
आप घटते हैं तो घटते ही चले जाते हैं,
और बढ़ते हैं तो बस यानी कि
बढ़ते ही चले जाते हैं—
हम नहीं लेते हैं जब तक बि ल कु ल ही
गोल न हो जाएँ,
बिलकुल गोल।
यह मर्ज़ आपका अच्छा ही नहीं होने में...
आता है।
- पुस्तक : वसंत भाग 1 (पृष्ठ 23)
- रचनाकार : शमशेर बहादुर सिंह
- प्रकाशन : एनसीईआरटी
- संस्करण : 2022
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