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चला गया आदमी

chala gaya adami

विनय सौरभ

विनय सौरभ

चला गया आदमी

विनय सौरभ

और अधिकविनय सौरभ

    बस में उसने एक बुज़ुर्ग को उठकर जगह दी थी

    सड़क दुर्घटना में घायल हुए

    एक रिक्शा चालक के इलाज के लिए चंदा किया था

    आज वह दृश्य याद रहा है

    एक बार सब्ज़ियों की हाट में

    उसने अच्छे प्याज छाँटने में मेरी मदद की थी

    इससे ज़्यादा का कोई वास्ता नहीं रहा मेरा उससे

    जब तीन साल पहले वह अचानक ग़ायब हुआ

    क़स्बे से तो भाइयों को चिंता हुई कि कहाँ गया!

    दो साल के बाद उसे मरा मान लिया गया

    और इस तरह उसके भाइयों ने उसके बिना जीना शुरू किया

    एक भाई की स्त्री इस अनुमान से ख़ुश थी

    और ख़ूब ख़ुश रहती थी

    एक रोज़ पूस की भोर में लौटा

    वह औचक पहली गाड़ी से

    और सुबह आठ बजते बजते

    तेरह सौ रुपए चुकता कर आया

    उस मारवाड़ी दुकानदार का

    जो पैसे डूब जाने की नाउम्मीदी में

    हवा में गालियाँ देता-देता एक रोज़ चुप हो गया था!

    वह जो कपड़े लेकर आया था

    भाइयों के बच्चों के लिए

    सही नाप के नहीं निकले!

    आज शाम की रेल से चला गया वह वापस

    भाइयों ने उसे रोका नहीं

    और कोई उसे रोकता भी क्यों

    जब उसे मरा मान लिया गया था

    स्रोत :
    • रचनाकार : विनय सौरभ
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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