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बूढ़े कवि को प्रणति

buDhe kawi ko pranati

उदयन वाजपेयी

उदयन वाजपेयी

बूढ़े कवि को प्रणति

उदयन वाजपेयी

और अधिकउदयन वाजपेयी

    लगातार मरते हुए भी मरना, जीवन को थामे रखना

    दुःख की परतों को बरस दर बरस

    उधेड़ते जाकर उसके अंतस में

    रस से भरा वह प्याला देखना

    जिसका आश्वासन था, उम्मीद

    वहीं मेज़ पर सिर टिकाकर बैठ जाना कुछ देर

    मानो अब तक जिए को याद करने की कोशिश

    अपने ही सामने निःशेष हो रही हो

    फिर पूरे संकोच बल्कि शर्म से

    उस प्याले को एक-एक बूँद

    गले के नीचे उतारते जाकर

    यह पाने लगना कि अपने एक के बाद

    दूसरे आवरणों को उतारती हुई पृथ्वी

    नीले आकाश में तब्दील होती जाती है और

    क़रीब गए देवताओं के चेहरों पर

    वही स्पर्श बिखरे हैं जो वह

    उसके स्तनों पर अमूमन छोड़ आता रहा है।

    स्रोत :
    • पुस्तक : पागल गणितज्ञ की कविताएँ (पृष्ठ 105)
    • रचनाकार : उदयन वाजपेयी
    • प्रकाशन : वाणी प्रकाशन
    • संस्करण : 2005

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