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लड़कियाँ साँस ले रही हैं

laDkiyan sans le rahi hain

उमा शंकर चौधरी

उमा शंकर चौधरी

लड़कियाँ साँस ले रही हैं

उमा शंकर चौधरी

और अधिकउमा शंकर चौधरी

    धरती की सारी लड़कियाँ

    कमरे में बंद हैं

    कमरे में एक छोटी खिड़की है और

    एक दरवाज़ा

    कमरे की छोटी खिड़की लकड़ी के पट्टे से बंद है

    दरवाज़े पर टिकी हैं सख़्त निगाहें

    खिड़की और दरवाज़े की दरारों से छनकर

    रही रोशनी को देखती हैं लड़कियाँ

    और अंदाज़ लगाती हैं दिन और रात

    सुबह और शाम के ढलने और उगने की प्रक्रिया

    लड़कियाँ चाहती हैं उन दरारों से निकलकर

    फुर्र से उड़ जाना

    दूर आसमान में

    पर वे उस कमरे में बंद हैं

    दरवाज़े पर टिकी सख़्त निगाहें, जिनकी हैं

    वे ख़ुश हैं

    वे बैठ रहे हैं, उठ रहे हैं, खा रहे हैं

    चल रहे हैं, सो रहे हैं,

    वे मौज कर रहे हैं और जीवन जी रहे हैं

    उन्हें उन लड़कियों की फ़िक्र नहीं है

    उनकी धीमी आवाज़ वे सुन नहीं पाते हैं

    उनकी सिसकियों को वे समझ नहीं पाते हैं

    वे सिर्फ़ जानते हैं, लड़कियाँ जीवित हैं

    दरवाज़े पर टिकी हैं जिनकी सख़्त निगाहें

    उनका चेहरा सख़्त नहीं हैं

    उनका चेहरा पत्थर का नहीं हैं

    उनके चेहरे को इस समाज से अलग करना संभव नहीं है

    लड़कियाँ कमरे के भीतर बंद हैं और

    भीतर ही भीतर जवान हो रही हैं

    वे कमरे के भीतर ही बूढ़ी हो जाएँगी

    लड़कियों का कमरा एक बार बदला जाएगा

    यहाँ से वहाँ

    लेकिन इसका एहसास उन्हें नहीं होगा

    या नहीं होने दिया जाएगा

    वे बस देखती रहेंगी

    दरारों से आने वाली रोशनी की धार

    लड़कियाँ साँस लेती रहेंगी और

    जीवित रहेंगी

    लड़कियाँ अपनी धड़कनों को महसूस करेंगी और

    जीवित रहेंगी

    लड़कियाँ कमरे में बंद हैं और

    कमज़ोर हो रही हैं

    वे दो क़दम चलती हैं और बैठ जाती हैं

    वे खड़ी होती हैं और दीवार को पकड़ लेती हैं

    वे पत्ते पर आँखें की बूँद के गिरने की आवाज़ सुनती हैं

    और काँप जाती हैं

    लड़कियाँ कमरे में बंद हैं और साँस ले रही हैं

    लड़कियाँ जीवित हैं

    लेकिन लड़कियों के मन के भीतर भी

    पूरी एक दुनिया है

    पूरा एक समंदर

    उस समंदर में है सुनहरी मछलियाँ, केकड़े और सीप

    सीप में है मोती

    लड़कियाँ अपनी दुनिया में उबल रही हैं

    लड़कियाँ अपनी धड़कन को महसूस कर रही हैं

    लड़कियाँ एक दिन इस कमरे में सुराख़ कर देंगी

    और अपने शरीर को एक पतली डोर बनाकर एक दिन

    उस सुराख़ से बाहर भाग जाएँगी

    बाहर वे एक नई दुनिया रचेंगी

    लड़कियाँ उस कमरे से भाग जाएँगी

    क्योंकि उन्होंने सीख लिया है अपने शरीर को पतली डोर में बदलना

    उन्होंने शुरू कर दिया है अपनी धड़कनों को सुनना

    जिस दिन लड़कियाँ उस बंद कमरे से भाग जाएँगी

    इस धरती पर एक प्रलय होगी

    समुद्र का पानी मीलों उछाल भरेगा

    हवा बहुत तेज़ होगी

    लेकिन ठीक उसी दिन, उसी क्षण

    धरती बहुत सुकून महसूस करेगी

    यह धरती, यह हरियाली सब लड़कियों के साथ हैं

    यह सोचा जाना चाहिए कि जिस दिन लड़कियाँ भाग जाएँगी

    उस दिन यह दुनिया कितनी रंगीन हो जाएगी

    पर लड़कियाँ अभी कमरे में बंद हैं

    और साँस ले रही हैं।

    स्रोत :
    • रचनाकार : उमाशंकर चौधरी
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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