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बोलती हुई चीज़ें

bolti hui chizen

संजय कुंदन

संजय कुंदन

बोलती हुई चीज़ें

संजय कुंदन

और अधिकसंजय कुंदन

    अब चीज़ें आदमी से ज़्यादा

    मुखर और सक्रिय थीं

    वे इंसान से एक क़दम आगे बढ़कर

    फ़ैसले कर रही थीं

    हो सकता है आप किसी व्यक्ति से मिलने जाएँ तो

    अपने स्वागत में मेज़बान से पहले

    उसके घर के सोफ़े को हिलता हुआ पाएँ

    इस बात की पूरी गुंजाइश है कि वह सोफ़ा ही तय करे कि

    आपको मुलाक़ात के लिए कितना वक़्त दिया जाए

    और दीवार पर टँगी एक घड़ी यह फ़ैसला करे

    कि आपको चाय मिले या पानी पर ही टरकाया जाए

    यह काम मेज़बान की क़मीज़ भी कर सकती है

    आपकी क़मीज़ का ढंग से मुआयना करने के बाद

    वैसे उस व्यक्ति से मिलकर जाने के बाद भी

    यह भ्रम बना रह सकता है

    कि उसी से मुलाक़ात हुई

    या उसके मोबाइल से।

    स्रोत :
    • रचनाकार : संजय कुंदन
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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