पक्षी ऐसे भी होते हैं
pakshi aise bhi hote hain
पक्षी ऐसे भी होते हैं
पक्षी उड़ते हैं
लेकिन उड़ान का पता नहीं चलता
अथ काया अंत का
लौट आने का, अथवा न लौटने का
उगती छोटी-सी धड़कन का
पक्षी ऐसे भी होते हैं।
पक्षी पंक्तियों में उड़ते हैं
उड़ती हुई पंक्तियाँ लिखते हैं
रंगों में तैरते हैं, डूबते हैं
घरों को छोड़ आते हैं
मुहब्बत याद में लेकर
दिमाग़ में सोच बाँधकर
मुक्त विचरते हैं
परिंदे ऐसे भी होते हैं।
पक्षी अकेले भी होते हैं, तो स्वप्न बुनते हैं
तिनकों के, रेशों के, धागों के
और ऐसे ही हर चीज़ के स्वप्न
घोंसलें के बारे में सोचते हैं
नन्ही चोंच के बारे में, छिपे पंखों के बारे में
चोगे के लिए यत्नशील लगते हैं
पक्षी ऐसे भी होते हैं।
परिंदे पर तोलते हैं, देखते हैं भटकता प्रकाश
अलसुबह, प्रभातवेला, खाने-निभाते
पक्षी, रातों के बारे में सोचते हैं,
गर्म, बेख़ौफ़ रातें, और कई बार
न ख़त्म होने वाली रातें
मौसम के बारे में सोचते हैं, फ़सलों, दानों के बारे में
नंगें पाँवों के बारे में
शीत-ऋतु के संदेश गर्माते हैं भेजते हैं
शरीर ढाँपतें हैं, पंखों के साथ।
पक्षी पर तोलते हैं
तनिक आवाज़ से चौंकते हैं
कुछ न कुछ चोंच में लेकर उड़ते हैं
नज़र तो भ्रम के धागे में कसते, बाँधते हैं।
पक्षी अब भी विरह के बोल सुनने को
बिलखते होंगे
पक्षी गगन की इबारत पढ़ते
मिट्टी का मोल आँकते
तालाब के किनारे बैठते होंगे।
पक्षी थे तो उड़ते रहे
पार करते रहे अंबर की दूर दिशाएँ
हरे-नीले जल के बदन को नापा
बियाबान में उड़े
और नख़लिस्तान देखे, देखते गए।
अंजीरों के झुंड में बिताईं रातें
देखा चाँद भी पास बिठाकर
क़ाफ़िले वालों की सुनते रहे बातें
ऊँटों से सुना, और सुनाया भी हालचाल।
सुनी मार्ग की मूक वेदना
सस्सी की झुलसी हुई हथेलियाँ
हाशिम के दोहे पढ़े
पढ़े फ़रीद के श्लोक भी
सहन की विरह की यातना
चट्टानी दीवार देखी विश्वास की
प्रेम के दावे निहारे
कैसे स्नेह थे जो पर्वतों तक उड़ पाए
देखा वह शीत कुंड
शाश्वत काव्य
शक्ति की छवि देखते रहे
मित्र प्यारे के स्नेह का लहलहाता दरिया
वह भी समय होता है कि थक जाते हैं पंख
लेकिन क़ायम रहती है साँस
न तो उड़ान भरने की इच्छा रहती है
न ही परवाज़, तीखी लगन होती है
जीने के लिए एक पौधा पर्याप्त होता है
साथ देने के लिए एक पक्षी ही बहुत है।
एक पड़ताल थी जिसे सहेजा है
कि पंख कटवाकर भी दिशा को देखना है
पक्षियों का कहना है, हुनर की एक-एक टहनी ले लो
तिनका-तिनका, पत्ती-पत्ती, मार्ग का एक-एक कण
अंबर को नापने, दिशा पहचानने के लिए
कहीं तो होता है शांत ठंडा शीत
कहीं तो होती है, सपनीली नदी, फूलों की वादी
कभी तो मिलता है कोमल होठों का स्पर्श
दिल की धड़कन, नज़र की आत्मीयता
खोज ही लेते हैं पक्षी
उड़ते हैं, पर पता नहीं देते परवाज़ का।
पक्षी धुंध में से निकलते हैं, पंखों में बँधी रहती है नज़र
तन में तरंगों का उत्सव, बर्फ़ और किरणों को सूँघते हैं पक्षी
पक्षी वस्तुतः चमत्कार हैं, महक हैं परिंदे
पक्षियों के परों की चित्रकारी भी कैसी है
अजंता और एलोरा के पक्षी
लद्दाखी गुफाओं वाले रंगों के कालचित्र।
इन्हीं करामातों के कारण
मेरा मन चाहता है पक्षी होना
पक्षी ऐसे भी होते हैं,
पक्षी उड़ते हैं,
लेकिन पता नहीं लगता उड़ान का।
- पुस्तक : बीसवीं सदी का पंजाबी काव्य (पृष्ठ 491)
- रचनाकार : कवि के साथ अनुवादक फूलचंद मानव, योगेश्वर कौर
- प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
- संस्करण : 2014
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