दिखता नहीं चिड़ियों का प्रेम
dikhta nahin chiDiyon ka prem
मैं पूरी दुनिया को चिड़ियों की आँखों से देखूँगा
जिनके घोंसले किसी तरह का टैक्स अदा नहीं करते
वे समुद्रों में, तटों पर, दरख़्तों में, आकाश में,
जंगलों में
यहाँ तक कि हमारे घरों की मुँडेरों और छतों पर
बिना संशय और दुविधा के
टाँग आती हमारी मृत आज़ादी और टूटे पंख
वे इतिहास और स्मृतियों का शिकार नहीं
उनके नाज़ुक पंजों में पेड़ संबल पाता है
अगर यह पृथ्वी अपराध, ईर्ष्या और द्वंद्व में घिरी है
तो उनकी नन्हीं गोल भूरी आँखें अंत हैं इनका
समुद्र की पारदर्शी आँखों-सा
दिखता नहीं चिड़ियों का प्रेम
वे क्षितिज और चिह्न नहीं बनातीं
उनकी मृत देह शांति का प्रतीक है
उनकी उदासी वे गिरती पत्तियाँ हैं
जो ढँक देती हमारी क़ब्रों को
हरी घास और संगीत से
मैं जब खिड़कियों से देखता हूँ
अपनी चोंच में पीला तिनका दबाए
वे पार कर रही होती हैं मकानों से उठती
प्लास्टिक और चमड़े की गंध को
सारी चिड़ियाँ
पृथ्वी पर चिहुँक करती
घुल रही हैं हमारी खरोंची हुई ज़िंदगी में
लोकगीतों की तरह!
- रचनाकार : नीलोत्पल
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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