बी एच यू कैंपस साढ़े सात बजे के बाद
bi ech yu kaimpas saDhe saat baje ke baad
अपूर्वा श्रीवास्तव
Apurwa Srivastava
बी एच यू कैंपस साढ़े सात बजे के बाद
bi ech yu kaimpas saDhe saat baje ke baad
Apurwa Srivastava
अपूर्वा श्रीवास्तव
और अधिकअपूर्वा श्रीवास्तव
अँधेरा तो ख़ैर...
रोशनी में भी साथ नहीं बैठ सकते
दो लोग
बीएचयू कैंपस में साढ़े सात बजे के बाद
देश के इस भावी विश्वविद्यालय में आयोजित की जाती हैं
लैंगिक संवेदनशीलता की कार्यशालाएँ
यहाँ पढ़ाई जाती हैं देश-विदेश का तमाम साहित्य और प्रेम कविताएँ
मंचों से दिए जाते हैं आक्रमक भाषण
बात की जाती है समानता, स्वीकार्यता, और स्वच्छंदता की
दौड़ती है प्रगतिशील चेतना बुद्धिजीवियों की रग-रग में
केवल—
केवल, साढ़े सात बजे तक!
इसके बाद विश्वविद्यालय सो जाता है गहरी नींद में
जाग रहे होते हैं केवल प्रशासनिक अधिकारी
जो परिसर में बैठे प्रत्येक छात्र से कहते हैं—चलो-चलो निकलो, हो गया है समय!
समय, कौन निर्धारित करता है यह समय?
कौन-सी सुरक्षा मुहैया कराई जाती है क़ैद कर?
क्या चार दिवारी के भीतर रहकर ही रहा जा सकता है सुरक्षित?
अफ़सोस, साढ़े सात बज चुका है
कौन देगा मेरे सवालों का जवाब
अभी शेष थी कितनी बातें कितने क़िस्से कितनी कहानियाँ
कितना प्रेम!
अफ़सोस।
- रचनाकार : अपूर्वा श्रीवास्तव
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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