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भूलना एक ख़ूबसूरत वरदान है

bhulna ek khubsurat wardan hai

रति सक्सेना

रति सक्सेना

भूलना एक ख़ूबसूरत वरदान है

रति सक्सेना

और अधिकरति सक्सेना

    भूलना एक ख़ूबसूरत वरदान है, पिता भी इस बात को मानते थे,

    वह इसलिए भी मानते थे कि उनके अँग्रेज़ टीचर मानते थे,

    मैं भूलती हूँ कि इन अनजान शहर में अनजान

    टैक्सी ड्राइवर ने मुझे बीच रास्ते पर उतार दिया

    मैं भूलती हूँ कि अपने ही भाषा के कुछ कमज़ोर लोगों ने

    मुझ पर कंकड़ फेंका

    अपनी खोह में छिपे-छिपे

    भूलती हूँ तुझे भी मेरी नानी के ईश्वर,

    कैसे नाम के साथ शकल (शक्ल) बदलता है

    इस जगह से उस जगह में

    मैं भूलती हूँ उसे जानबूझकर, इसे अनजाने में

    फ़रिश्तों की रूहों को जो साथ लगी रहती हैं मेरे

    बस भूल नहीं पाती हूँ कि किस-किसको

    भूलना चाहा है मैंने और कौन नहीं भुला पाया।

    स्रोत :
    • रचनाकार : रति सक्सेना
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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