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भारत भवन में अगस्त का प्रवेश

bharat bhawan mein august ka prawesh

हेमंत देवलेकर

हेमंत देवलेकर

भारत भवन में अगस्त का प्रवेश

हेमंत देवलेकर

और अधिकहेमंत देवलेकर

    हरी घास में समाधिस्थ

    बैल की पीठ का कूबड़ है—

    उद्घाटन शिला

    यह लाल पत्थरों की विशाल बावड़ी है

    क्या भरने,

    किस में डूबने

    उतरते हैं उकताए मन के पाँव

    घनी घास के बीच से

    उग आई हैं फ़र्शियाँ

    यह बारिश के लंगड़ी-पव्वा खेलने का मैदान है

    सीपी में दुबके मोती-सा कछुआ

    चलता है तो पीछे, दीवारों के

    पोस्टर बदल जाते हैं

    पोस्टर : कैलेंडर में त्यौहार वाले लाल चौखाने हैं

    बारिश में भीगी दीवारें

    और ज़्यादा ताज़ी, गाढ़ी

    जैसे गीले बदन पर चिपटा सफ़ेद दुपट्टा

    कत्थई गुलाब हो गया हो

    लकड़ी पर उगी फफूँद की तरह : शिल्प

    यहाँ की हर चिड़िया

    स्वामी की उड़ती हुई पेंटिंग है

    रंगीन पिरामिड जैसे पीसा की मीनार

    पत्थरों का उत्तरी गोलार्ध

    मेघालय का कोई मोहल्ला है

    बहिरंग के मंच पर घुटनों तक घास

    और फहराती काँस की कलगियाँ

    जितनी झील ख़ुश है

    यह दर्शक-दीर्घा उतनी ही उदास

    काला शामियाना तना हुआ है

    और ‘बादल राग’ का पोस्टर भीग रहा है।

    स्रोत :
    • रचनाकार : हेमंत देवलेकर
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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