औरत को शृंगार अधिकार के रूप में प्राप्त था
या अर्थव्यवस्था ने उस पर व्यापार थोपा था
लंबे केश, नयन सुरमा, होंठों की लाली
ये सौंदर्यीकरण ही थे
या कुछ ढक दिया गया था,
दबा दिया गया था
या ध्यान भटकाया गया था
नाख़ून बढ़ते तो थे
उनको रँगकर कौन-सी धार कुंद की गई?
और भुला दी गई उसकी शक्ति!
उसकी कोख को चिराग़ों की दियाळी मात्र बनाकर
किसी भी तेल से भरा गया
और बाँझ दियालियों को मंदिरों के बाहर फेंका गया
जिसे किसी भी अन्य काम के लिए घिसा गया,
उसकी चीख़ें युगों-युगों तक परिवर्तित की गईं
और संगीत में उतार दी गईं
करुण रस बनाकर
इन सभी रूपों में इसको फुसलाकर-बहलाकर
सजना है मुझे, सजना के लिए तक रोका गया
उसके देह पर नाख़ूनों की खुरचन किस सुख से भुनाई गई?
सहजता, समर्पण, सहमति को कब तक तराशने के बाद
कौटुम्बिक व्यभिचार तक उकेरा गया
इस सभ्यता के विस्तार के साथ किस पतन में
उसे सजा-धजाकर चीरा गया
और उसकी किस छाया का हरण कर
निर्जर, निर्वस्त्र, निरात्मा किया गया?
उसके खुले बाल कब किसी पौरुष को बाँधने को बँधे?
आँखे कब रक्तपिपासु हुईं?
होंठ कब किसी अप्रत्याशित लिंग को चीरकर लाल हुए?
और नाख़ून कब किसी पंजे-सा इस्तेमाल हुए?
जो किसी कुदृष्टि को नोच सके हों?
वो स्वयं कहाँ मग्न रही?
उसके हथियारों को कुशलता से शृंगारों में उकेरा गया
और वो हाथ जोड़े किस ईश्वर से प्रार्थना करती रही?
ईश्वर ऐसा नहीं करता
वो ऊपर बैठ मुस्कुराता है,
अपनी देवी के प्रश्नों का उत्तर देता है
जब-जब वो पूछती है कि प्रभु
पृथ्वी पर ऐसा होने का क्या कारण है?
और अगर इस औरत को अपनी दशा सुधारनी है
तो उसे इन शृंगारों को फिर
हथियारों में परिवर्तित करना होगा।
- रचनाकार : किसलय त्रिपाठी
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
Additional information available
Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.
About this sher
Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.
rare Unpublished content
This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.