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बाज़ार में शिक्षा

bazar mein shiksha

आलोक रंजन

आलोक रंजन

बाज़ार में शिक्षा

आलोक रंजन

और अधिकआलोक रंजन

    एक औरत, दूसरी औरत से बोलती है कि

    दसवीं-बारहवीं के तो सही

    इन्होंने नौवीं के भी

    बढ़ा दिए हैं इतने-इतने फ़ीस

    अब कैसे जिएगा आदमी

    बच्चों को पाले

    या ख़ुद को।

    लोग कहते हैं शिक्षा बेची नहीं जाती

    लेकिन वास्तव में आज

    शिक्षा ही बेची जा रही

    नर्सरी से लेकर पीएचडी तक

    शिक्षा चिल्लाती है, बोलती है

    अपना दाम

    चौराहों पर, इमारतों पर, सड़कों पर

    दौड़ती गाड़ियों में।

    एक मध्यमवर्गीय परिवार की कमाई बस

    इतनी है कि जी सके और पढ़ा सके

    बच्चों को

    एक सामान्य शिक्षण संस्थान में

    नहीं बना सकता

    ज़ेवर ज़मीन आदि

    क्योंकि वह कोशिश में हैं

    आदमी बनाने को।

    स्रोत :
    • रचनाकार : आलोक रंजन
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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