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बरसात

barsat

कृष्ण कल्पित

और अधिककृष्ण कल्पित

    हम बरसात के थमने का इंतज़ार करते हैं

    कई बार भीग जाते हैं हमारे कंधे

    हम चल देते हैं

    पानी की परवाह किए बग़ैर

    हम घर से बहुत दूर होते हैं

    जब बरसात शुरू होती है

    कई दिनों तक बरसता है पानी

    घरों की छतों पर टपकता

    किसी लंबे शोकगीत की तरह

    धूप गुज़रे ज़माने की बात लगती है

    हम बहकर चले जाते हैं बहुत दूर

    अपने बचपन के दिनों में

    जहाँ तक पहुँचने के सारे रास्ते

    सिर्फ़ छतरी का एक छेद बचा है

    जहाँ से दिखाई पड़ता है आसमान

    जो शायद अब खुलने ही वाला है।

    स्रोत :
    • पुस्तक : बढ़ई का बेटा (पृष्ठ 48)
    • रचनाकार : कृष्ण कल्पित
    • प्रकाशन : रचना प्रकाशन
    • संस्करण : 1990

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