हैं इस हवा में क्या-क्या बरसात की बहारें
सब्ज़ों की लहलहाहट बाग़ात की बहारें
बूँदों की झमझमावट क़तरात की बहारें
हर बात के तमाशे हर घात की बहारें
क्या-क्या मची हैं यारो बरसात की बहारें
बादल हवा के ऊपर हो मस्त छा रहे हैं
झड़ियों की मस्तियों से धूमें मचा रहे हैं
पड़ते हैं पानी हर जा जल-थल बना रहे हैं
गुलज़ार भीगते हैं सब्ज़े नहा रहे हैं
क्या-क्या मची हैं यारो बरसात की बहारें
मारे हैं मौज डाबर दरिया उमंड़ रहे हैं
मोर-ओ-पपीहे कोयल क्या क्या रुमंड रहे हैं
झड़ कर रही हैं झड़ियाँ नाले उमंड़ रहे हैं
बरसे है मुँह झड़ा-झड़ बादल घुमंड़ रहे हैं
क्या-क्या मची हैं यारो बरसात की बहारें
जंगल सब अपने तन पर हरियाली सज रहे हैं
गुल फूल झाड़-बूटे कर अपनी धज कर रहे हैं
बिजली चमक रही है बादल गरज रहे हैं
अल्लाह के नक़ारे नौबत के बज रहे हैं
क्या-क्या मची हैं यारो बरसात की बहारें
बादल लगा टकोरें नौबत की गत लगावें
झींगुर झंगार अपनी सुरनाइयाँ बजावें
कर शोर मोर बगुले झड़ियों का मुँह बुलावें
पी पी करें पपीहे मेंढक मल्हारें गावें
क्या-क्या मची हैं यारो बरसात की बहारें
हर जा बिछा रहा है सब्ज़ा हरे बिछौने
क़ुदरत के बिछ रहे हैं हर जा हरे बिछौने
जंगलों में हो रहे हैं पैदा हरे बिछौने
बिछवा दिए हैं हक़ ने क्या-क्या हरे बिछौने
क्या-क्या मची हैं यारो बरसात की बहारें
सब्ज़ों की लहलहाहट कुछ अब्र की सियाही
और छा रही घटाएँ सुर्ख़ और सफ़ेद काही
सब भीगते हैं घर घर ले माह-ताब-माही
ये रंग कौन रंगे तेरे सिवा इलाही
क्या-क्या मची हैं यारो बरसात की बहारें
क्या-क्या रखे हैं यारब सामान तेरी क़ुदरत
बदले है रंग क्या-क्या हर आन तेरी क़ुदरत
सब मस्त हो रहे पहचान तेरी क़ुदरत
तीतर पुकारते हैं सुबहान तेरी क़ुदरत
क्या-क्या मची हैं यारो बरसात की बहारें
कोयल की कूक में भी तेरा ही नाम हैगा
और मोर की ज़टल में तेरा पयाम हैगा
ये रंग सौ मज़े का जो सुब्ह-ओ-शाम हैगा
ये और का नहीं है तेरा ही काम हैगा
क्या-क्या मची हैं यारो बरसात की बहारें
बोलीं बये बटेरें क़ुमरी पुकारे कू-कू
पी पी करे पपीहा, बगुले पुकारें तू-तू
क्या हुदहुदों की हक़ हक़ क्या फ़ाख़्तों की हू-हू
सब रट रहे हैं तुझको क्या पंख क्या पखेरू
क्या-क्या मची हैं यारो बरसात की मारें
जो मस्त हों इधर के कर शोर नाचते हैं
प्यारे का नाम ले कर क्या ज़ोर नाचते हैं
बादल हवा से कर कर घनघोर नाचते हैं
मेंढक उछल रहे हैं और मोर नाचते हैं
क्या-क्या मची हैं यारो बरसात की बहारें
फूलों की सेज ऊपर सोते हैं कितने बन-बन
सो हैं गुलाबी जोड़े फूलों के हार अबरन
कितनों के घर है खाना सोना लगे है आँगन
कोने में पड़ रही हैं सर मुँह लपेट सोगन
क्या-क्या मची हैं यारो बरसात की बहारें
जो ख़ुश हैं वो ख़ुशी में काटे हैं रात सारी
जो ग़म में हैं उन्हों पर गुज़रे है रात भारी
सीनों से लग रही हैं जो हैं पिया की प्यारी
छाती फटे है उनकी जो हैं बिरह की मारी
क्या-क्या मची हैं यारो बरसात की बहारें
जो वस्ल में हैं उनके जूड़े महक रहे हैं
झूलों में झूलते हैं गहने झमक रहे हैं
जो दुख में हैं सो उनके सीने फड़क रहे हैं
आहें निकल रही हैं आँसू टपक रहे हैं
क्या-क्या मची हैं यारो बरसात की बहारें
अब बिरहनों के ऊपर है सख़्त बे-क़रारी
हर बूँद मारती है सीने उपर कटारी
बदली की देख सूरत कहती हैं बारी-बारी
है है न ली पिया ने अब के भी सुध हमारी
क्या-क्या मची हैं यारो बरसात की बहारें
जब कोयल अपनी उनको आवाज़ है सुनाती
सुनते ही ग़म को मारे छाती है उमड़ी आती
पी पी की धुन को सुन कर बे-कल हैं कहती जाती
मत बोल ऐ पपीहे फटती है मेरी छाती
क्या-क्या मची हैं यारो बरसात की बहारें
है जिनकी सेज सूनी और ख़ाली चारपाई
रो रो उन्होंने हर-दम ये बात है सुनाई
परदेसी ने हमारी अब के भी सुध भुलाई
अब के भी छावनी जा परदेस में है छाई
क्या-क्या मची हैं यारो बरसात की बहारें
कितनों ने अपनी ग़म से अब है ये गत बनाई
मैले-कुचैले कपड़े आँखें भी डबडबाई
ने घर में झूला डाला ने ओढ़नी रंगाई
फूटा पड़ा है चूल्हा टूटी पड़ी कढ़ाई
क्या-क्या मची हैं यारो बरसात की बहारें
गाती है गीत कोई झूले पे करके फेरा
''मारू जी, आज कीजै याँ रैन का बसेरा
है ख़ुश किसी को आकर है दर्द-ओ-ग़म ने घेरा
मुँह ज़र्द बाल बिखरे और आँखों में अँधेरा
क्या-क्या मची हैं यारो बरसात की बहारें
और जिनको अब मुहय्या हुस्नों की ढेरियाँ हैं
सुर्ख़ और सुनहरे कपड़े इशरत की घेरियाँ हैं
महबूब दिलबरों की ज़ुल्फ़ें बिखेरियाँ हैं
जुगनू चमक रहे हैं रातें अँधेरियाँ हैं
क्या-क्या मची हैं यारो बरसात की बहारें
कितने तो भंग पी-पी कपड़े भिगो रहे हैं
बाँहें गुलों में डाले झूलों में सो रहे हैं
कितने बिरह के मारे सुध अपनी खो रहे हैं
झूले की देख सूरत हर आन रो रहे हैं
क्या-क्या मची हैं यारो बरसात की बहारें
बैठे हैं कितने ख़ुश हो ऊँचे छुआ के बंगले
पीते हैं मै के प्याले और देखते हैं जंगले
कितने फिरे हैं बाहर ख़ूबाँ को अपने संग ले
सब शाद हो रहे हैं उम्दा ग़रीब कंगले
क्या-क्या मची हैं यारो बरसात की बहारें
कितनों को महलों अंदर है ऐश का नज़ारा
या साएबान सुथरा या बाँस का उसारा
करता है सैर कोई कोठे का ले सहारा
मुफ़्लिस भी कर रहा है पूले तले गुज़ारा
क्या-क्या मची हैं यारो बरसात की बहारें
छत गिरने का किसी जा ग़ुल शोर हो रहा है
दीवार का भी धड़का कुछ होश खो रहा है
दर-दर हवेली वाला हर आन रो रहा है
मुफ़्लिस सो झोपड़े में दिल-शाद सो रहा है
क्या-क्या मची हैं यारो बरसात की बहारें
मुद्दत से हो रहा है जिनका मकाँ पुराना
उठ के है उनको मेंह में हर आन छत पे जाना
कोई पुकारता है टुक मोरी खोल आना
कोई कहे है चल भी क्यूँ हो गया दिवाना
क्या-क्या मची हैं यारो बरसात की बहारें
कोई पुकारता है लो ये मकान टपका
गिरती है छत की मिट्टी और साएबान टपका
छलनी हुई अटारी कोठा निदान टपका
बाक़ी था इक उसारा सो वो भी आन टपका
क्या-क्या मची हैं यारो बरसात की बहारें
ऊँचा मकान जिसका है पच खनाँ सवाया
ऊपर का खन टपक कर जब पानी नीचे आया
उस ने तो अपने घर में है शोर-ग़ुल मचाया
मुफ़्लिस पुकारते हैं जाने हमारा जाया
क्या-क्या मची हैं यारो बरसात की बहारें
सब्ज़ों पे वीरबहूटी टीलों उपर धतूरे
पिस्सू से मच्छरों से, रोए कोई बसोरे
बिच्छू किसी को काटे, कीड़ा किसी को घूरे
आँगन में कनसलाई, कोनों में खनखजूरे
क्या-क्या मची हैं यारो बरसात की बहारें
फुंसी किसी के तन में, सर पर किसी के फोड़े
छाती ये गर्मी दाने और पीठ में ददौड़े
खा पूरियाँ किसी को हैं लग रहे मड़ोड़े
आते हैं दस्त जैसे दौड़ें इराक़ी घोड़े
क्या-क्या मची हैं यारो बरसात की बहारें
पतली जहाँ किसी ने दाल और कढ़ी पकाई
मक्खी ने वोहीं बोली आ ऊँट की बुलाई
कोई पुकारता है क्यूँ ख़ैर तो है भाई
ऐसे जो खाँसते हो क्या काली मिर्च खाई
क्या-क्या मची हैं यारो बरसात की बहारें
जिस गुल-बदन के तन में पोशाक सोसनी है
सो वो परी तो ख़ासी काली-घटा बनी है
और जिस पे सुर्ख़ जोड़ा या ऊदी ओढ़नी है
उस पर तो सब घुलावट बरसात की छनी है
क्या-क्या मची हैं यारो बरसात की बहारें
बदनों में खप रहे हैं ख़ूबों के लाल जोड़े
झमकें दिखा रहे हैं परियों के लाल जोड़े
लहरें बना रहे हैं लड़कों के लाल जोड़े
आँखों में चुभ रहे हैं प्यारों के लाल जोड़े
क्या-क्या मची हैं यारो बरसात की बहारें
और जिस सनम के तन में जोड़ा है ज़ाफ़रानी
गुलनार या गुलाबी या ज़र्द सुर्ख़ धानी
कुछ हुस्न की चढ़ाई और कुछ नई जवानी
झूलों में झूलते हैं ऊपर पड़े है पानी
क्या-क्या मची हैं यारो बरसात की बहारें
कोई तो झूलने में झूले की डोर छोड़े
या साथियों में अपने पाँव से पाँव जोड़े
बादल खड़े हैं सर पर बरसे हैं थोड़े थोड़े
बूँदों में भीगते हैं लाल और गुलाबी जोड़े
क्या-क्या मची हैं यारो बरसात की बहारें
कितनों को हो रही है उस ऐश की निशानी
सोते हैं साथ जिसके कहती है वो सियानी
इस वक़्त तुम न जाओ ऐ मेरे यार-ए-जानी
देखो तो किस मज़े से बरसे है आज पानी
क्या-क्या मची हैं यारो बरसात की बहारें
कितने शराब पीकर हो मस्त छक रहे हैं
मै के गुलाबी आगे प्याले छलक रहे हैं
होता है नाच घर घर घुँघरू झनक रहे हैं
पड़ता है मेंह झड़ा-झड़ तबले खड़क रहे हैं
क्या-क्या मची हैं यारो बरसात की बहारें
हैं जिनके तन मुलायम मैदे की जैसे लोई
वो इस हवा में ख़ासी ओढ़े फिरे हैं लोई
और जिनकी मुफ़्लिसी ने शर्म-ओ-हया है खोई
है उनके सर पे सर की या बोरिए की खोई
क्या-क्या मची हैं यारो बरसात की बहारें
कितने फिरे हैं ओढ़े पानी में सुर्ख़ पट्टू
जो देख सुर्ख़ बदली होती है उन पे लट्टू
कितनों की गाड़ी रथ हैं कितनों के घोड़े टट्टू
जिस पास कुछ नहीं है वो हम-सा है निखट्टू
क्या-क्या मची हैं यारो बरसात की बहारें
जो इस हवा में यारो दौलत में कुछ बढ़े हैं
है उनके सर पे छतरी हाथी पे वो चढ़े हैं
हमसे ग़रीब-ग़ुरबा कीचड़ में गिर पड़े हैं
हाथों में जूतियाँ हैं और पाएँचे चढ़े हैं
क्या-क्या मची हैं यारो बरसात की बहारें
है जिन कने मुहैया पक्का पकाया खाना
उनको पलंग पे बैठे झड़ियों का हिज़ उड़ाना
है जिनको अपने घर में याँ लोन तेल लाना
है सर पे उनके पंखा या छाज है पुराना
क्या क्या मची हैं यारो बरसात की बहारें
कितने ख़ुशी से बैठे खाते हैं ख़ुश महल में
कितने चले हैं लेने बनिए से क़र्ज़ पल में
काँधे पै दाल, आटा हल्दी गिरह की बल में
हाथों में घी की प्याली और लकड़ियाँ बग़ल में
क्या-क्या मची हैं यारो बरसात की बहारें
कोई रात को पुकारे “प्यारे मैं भीगती हूँ”
“क्या तेरी उल्फ़तों की मारी मैं भीगती हूँ”
“आई हूँ तेरी ख़ातिर आ रे मैं भीगती हूँ”
“कुछ तो तरस तू मेरा खारे मैं भीगती हूँ”
क्या-क्या मची हैं यारो बरसात की बहारें
कोई पुकारती है “दिल सख़्त भीगती हूँ”
“काँपे है मेरी छाती, यकलख़्त भीगती हूँ”
“कपड़े भी तर बतर हैं और सख़्त भीगती हूँ”
“जल्दी बुला ले मुझको कमबख़्त भीगती हूँ”
क्या-क्या मची हैं यारो बरसात की बहारें
कोई पुकारती है “क्या क्या मुझे भिगोया”
कोई पुकारती है “कैसा मुझे भिगोया”
“नाहक़ क़रार करके, झूठा, मुझे भिगोया”
“यूँ दूर से बुलाकर, अच्छा मुझे भिगोया”
क्या-क्या मची हैं यारो बरसात की बहारें
जिन दिलबरों की ख़ातिर, भीगे हैं जिनके जोड़े
वह देख उनकी उल्फ़त होते हैं थोड़े-थोड़े
ले उनके भीगे कपड़े हाथों में घर निचोड़े
चीरा कोई सुखावे, जामा कोई निचोड़े
क्या-क्या मची हैं यारो बरसात की बहारें
कीचड़ से हो रही है, जिस जा ज़मीं फिसलती
मुश्किल हुई है वाँ से हर एक को राह चलनी
फिसला जो पाँव पगड़ी मुश्किल है फिर सँभलनी
जूती गड़ी तो वाँ से क्या ताब फिर निकलनी
क्या-क्या मची हैं यारो बरसात की बहारें
कितने तो कीचड़ों की दलदल में फँस रहे हैं
कपड़े तमाम गंदे दलदल में बस रहे हैं
कितने उठे हैं मर-मर, कितने उकस रहे हैं
वह दुःख में फँस रहे हैं और लोग हँस रहे हैं
क्या-क्या मची हैं यारो बरसात की बहारें
कहता है कोई गिर कर, यह ऐ ख़ुदाए लीजो
कोई डगमगा के हर दम कहता है वाए लीजो
कोई हाथ उठा पुकारे मुझकों भी हाय लीजो
कोई शोर कर पुकारे गिरने न पाए लीजो
क्या-क्या मची हैं यारो बरसात की बहारें
फिर कर किसी के कपड़े दलदल में है मुअ`तर
फिसला कोई किसी का कीचड़ में मुँह गया भर
एक दो नहीं फिसलते, कुछ इसमें जान अक्सर
होते हैं सैकड़ों के सर नीचे पाँव ऊपर
क्या-क्या मची हैं यारो बरसात की बहारें
यह रुत वह है कि जिसमें खुर्दों कबीर ख़ुश हैं
अदना, ग़रीब, मुफ़्लिस, शाहो वज़ीर ख़ुश हैं
माशूक शादो ख़ुर्रम, आशिक़ असीर ख़ुश हैं
जितने हैं अब जहाँ में, सब ऐ “नज़ीर” ख़ुश हैं
क्या-क्या मची हैं यारो बरसात की बहारें
hain is hawa mein kya kya barsat ki baharen
sabzon ki lahlahahat baghat ki baharen
bundon ki jhamjhamawat qatrat ki baharen
har baat ke tamashe har ghat ki baharen
kya kya machi hain yaro barsat ki baharen
badal hawa ke upar ho mast chha rahe hain
jhaDiyon ki mastiyon se dhumen macha rahe hain
paDte hain pani har ja jal thal bana rahe hain
gulzar bhigte hain sabze nha rahe hain
kya kya machi hain yaro barsat ki baharen
mare hain mauj Dabar dariya umanD rahe hain
mor o papihe koel kya kya rumanD rahe hain
jhaD kar rahi hain jhaDiyan nale umanD rahe hain
barse hai munh jhaDa jhaD badal ghumanD rahe hain
kya kya machi hain yaro barsat ki baharen
jangal sab apne tan par hariyali saj rahe hain
gul phool jhaD bute kar apni dhaj kar rahe hain
bijli chamak rahi hai badal garaj rahe hain
allah ke naqare naubat ke baj rahe hain
kya kya machi hain yaro barsat ki baharen
badal laga takoren naubat ki gat lagawen
jhingur jhangar apni surnaiyan bajawen
kar shor mor bagule jhaDiyon ka munh bulawen
pi pi karen papihe meinDhak malharen gawen
kya kya machi hain yaro barsat ki baharen
har ja bichha raha hai sabza hare bichhaune
qudrat ke bichh rahe hain har ja hare bichhaune
janglon mein ho rahe hain paida hare bichhaune
bichhwa diye hain haq ne kya kya hare bichhaune
kya kya machi hain yaro barsat ki baharen
sabzon ki lahlahahat kuch abr ki siyahi
aur chha rahi ghatayen surkh aur safed kahi
sab bhigte hain ghar ghar le mah tab mahi
ye rang kaun range tere siwa ilahi
kya kya machi hain yaro barsat ki baharen
kya kya rakhe hain yarab saman teri qudrat
badle hai rang kya kya har aan teri qudrat
sab mast ho rahe pahchan teri qudrat
titar pukarte hain subhan teri qudrat
kya kya machi hain yaro barsat ki baharen
koel ki kook mein bhi tera hi nam haiga
aur mor ki zatal mein tera payam haiga
ye rang sau maze ka jo subah o sham haiga
ye aur ka nahin hai tera hi kaam haiga
kya kya machi hain yaro barsat ki baharen
bolin baye bateren qumri pukare ku ku
pi pi kare papiha, bagule pukaren tu tu
kya hudahudon ki haq haq kya fakhton ki hu hu
sab rat rahe hain tujhko kya pankh kya pakheru
kya kya machi hain yaro barsat ki maren
jo mast hon idhar ke kar shor nachte hain
pyare ka nam le kar kya zor nachte hain
badal hawa se kar kar ghanghor nachte hain
menDhak uchhal rahe hain aur mor nachte hain
kya kya machi hain yaro barsat ki baharen
phulon ki sej upar sote hain kitne ban ban
so hain gulabi joDe phulon ke haar abran
kitnon ke ghar hai khana sona lage hai angan
kone mein paD rahi hain sar munh lapet sogan
kya kya machi hain yaro barsat ki baharen
jo khush hain wo khushi mein kate hain raat sari
jo gham mein hain unhon par guzre hai raat bhari
sinon se lag rahi hain jo hain piya ki pyari
chhati phate hai unki jo hain birah ki mari
kya kya machi hain yaro barsat ki baharen
jo wasl mein hain unke juDe mahak rahe hain
jhulon mein jhulte hain gahne jhamak rahe hain
jo dukh mein hain so unke sine phaDak rahe hain
ahen nikal rahi hain ansu tapak rahe hain
kya kya machi hain yaro barsat ki baharen
ab birahnon ke upar hai sakht be qarari
har boond marti hai sine upar katari
badli ki dekh surat kahti hain bari bari
hai hai na li piya ne ab ke bhi sudh hamari
kya kya machi hain yaro barsat ki baharen
jab koel apni unko awaz hai sunati
sunte hi gham ko mare chhati hai umDi aati
pi pi ki dhun ko sun kar be kal hain kahti jati
mat bol ai papihe phatti hai meri chhati
kya kya machi hain yaro barsat ki baharen
hai jinki sej suni aur khali charpai
ro ro unhonne har dam ye baat hai sunai
pardesi ne hamari ab ke bhi sudh bhulai
ab ke bhi chhawani ja pardes mein hai chhai
kya kya machi hain yaro barsat ki baharen
kitnon ne apni gham se ab hai ye gat banai
maile kuchaile kapDe ankhen bhi DabDabai
ne ghar mein jhula Dala ne oDhni rangai
phuta paDa hai chulha tuti paDi kaDhai
kya kya machi hain yaro barsat ki baharen
gati hai geet koi jhule pe karke phera
maru ji, aaj kijai yan rain ka basera
hai khush kisi ko aakar hai dard o gham ne ghera
munh zard baal bikhre aur ankhon mein andhera
kya kya machi hain yaro barsat ki baharen
aur jinko ab muhayya husnon ki Dheriyan hain
surkh aur sunahre kapDe ishrat ki gheriyan hain
mahbub dilabron ki zulfen bikheriyan hain
jugnu chamak rahe hain raten andheriyan hain
kya kya machi hain yaro barsat ki baharen
kitne to bhang pi pi kapDe bhigo rahe hain
banhen gulon mein Dale jhulon mein so rahe hain
kitne birah ke mare sudh apni kho rahe hain
jhule ki dekh surat har aan ro rahe hain
kya kya machi hain yaro barsat ki baharen
baithe hain kitne khush ho unche chhua ke bangle
pite hain mai ke pyale aur dekhte hain jangle
kitne phire hain bahar khuban ko apne sang le
sab shad ho rahe hain umda gharib kangle
kya kya machi hain yaro barsat ki baharen
kitnon ko mahlon andar hai aish ka nazara
ya sayeban suthra ya bans ka usara
karta hai sair koi kothe ka le sahara
muflis bhi kar raha hai pule tale guzara
kya kya machi hain yaro barsat ki baharen
chhat girne ka kisi ja ghul shor ho raha hai
diwar ka bhi dhaDka kuch hosh kho raha hai
dar dar haweli wala har aan ro raha hai
muflis so jhopDe mein dil shad so raha hai
kya kya machi hain yaro barsat ki baharen
muddat se ho raha hai jinka makan purana
uth ke hai unko meinh mein har aan chhat pe jana
koi pukarta hai tuk mori khol aana
koi kahe hai chal bhi kyoon ho gaya diwana
kya kya machi hain yaro barsat ki baharen
koi pukarta hai lo ye makan tapka
girti hai chhat ki mitti aur sayeban tapka
chhalni hui atari kotha nidan tapka
baqi tha ek usara so wo bhi aan tapka
kya kya machi hain yaro barsat ki baharen
uncha makan jiska hai pach khanan sawaya
upar ka khan tapak kar jab pani niche aaya
us ne to apne ghar mein hai shor ghul machaya
muflis pukarte hain jane hamara jaya
kya kya machi hain yaro barsat ki baharen
sabzon pe wirabhuti tilon upar dhature
pissu se machchhron se, roe koi basore
bichchhu kisi ko kate, kiDa kisi ko ghure
angan mein kansalai, konon mein khankhajure
kya kya machi hain yaro barsat ki baharen
phunsi kisi ke tan mein, sar par kisi ke phoDe
chhati ye garmi dane aur peeth mein dadauDe
kha puriyan kisi ko hain lag rahe maDoDe
ate hain dast jaise dauDen iraqi ghoDe
kya kya machi hain yaro barsat ki baharen
patli jahan kisi ne dal aur kaDhi pakai
makkhi ne wohin boli aa unt ki bulai
koi pukarta hai kyoon khair to hai bhai
aise jo khanste ho kya kali mirch khai
kya kya machi hain yaro barsat ki baharen
jis gul badan ke tan mein poshak sosani hai
so wo pari to khasi kali ghata bani hai
aur jis pe surkh joDa ya udi oDhni hai
us par to sab ghulawat barsat ki chhani hai
kya kya machi hain yaro barsat ki baharen
badnon mein khap rahe hain khubon ke lal joDe
jhamken dikha rahe hain pariyon ke lal joDe
lahren bana rahe hain laDkon ke lal joDe
ankhon mein chubh rahe hain pyaron ke lal joDe
kya kya machi hain yaro barsat ki baharen
aur jis sanam ke tan mein joDa hai zafrani
gulnar ya gulabi ya zard surkh dhani
kuch husn ki chaDhai aur kuch nai jawani
jhulon mein jhulte hain upar paDe hai pani
kya kya machi hain yaro barsat ki baharen
koi to jhulne mein jhule ki Dor chhoDe
ya sathiyon mein apne panw se panw joDe
badal khaDe hain sar par barse hain thoDe thoDe
bundon mein bhigte hain lal aur gulabi joDe
kya kya machi hain yaro barsat ki baharen
kitnon ko ho rahi hai us aish ki nishani
sote hain sath jiske kahti hai wo siyani
is waqt tum na jao ai mere yar e jani
dekho to kis maze se barse hai aaj pani
kya kya machi hain yaro barsat ki baharen
kitne sharab pikar ho mast chhak rahe hain
mai ke gulabi aage pyale chhalak rahe hain
hota hai nach ghar ghar ghunghru jhanak rahe hain
paDta hai meinh jhaDa jhaD table khaDak rahe hain
kya kya machi hain yaro barsat ki baharen
hain jinke tan mulayam maide ki jaise loi
wo is hawa mein khasi oDhe phire hain loi
aur jinki muflisi ne sharm o haya hai khoi
hai unke sar pe sar ki ya boriye ki khoi
kya kya machi hain yaro barsat ki baharen
kitne phire hain oDhe pani mein surkh pattu
jo dekh surkh badli hoti hai un pe lattu
kitnon ki gaDi rath hain kitnon ke ghoDe tattu
jis pas kuch nahin hai wo hum sa hai nikhattu
kya kya machi hain yaro barsat ki baharen
jo is hawa mein yaro daulat mein kuch baDhe hain
hai unke sar pe chhatri hathi pe wo chaDhe hain
hamse gharib ghoraba kichaD mein gir paDe hain
hathon mein jutiyan hain aur payenche chaDhe hain
kya kya machi hain yaro barsat ki baharen
hai jin kane muhaiya pakka pakaya khana
unko palang pe baithe jhaDiyon ka his uDana
hai jinko apne ghar mein yan lon tel lana
hai sar pe unke pankha ya chhaj hai purana
kya kya machi hain yaro barsat ki baharen
kitne khushi se baithe khate hain khush mahl mein
kitne chale hain lene baniye se qarz pal mein
kandhe pai dal, aata haldi girah ki bal mein
hathon mein ghi ki pyali aur lakDiyan baghal mein
kya kya machi hain yaro barsat ki baharen
koi raat ko pukare “pyare main bhigti hoon”
“kya teri ulfton ki mari main bhigti hoon”
“i hoon teri khatir aa re main bhigti hoon”
“kuchh to taras tu mera khare main bhigti hoon”
kya kya machi hain yaro barsat ki baharen
koi pukarti hai “dil sakht bhigti hoon”
“kanpe hai meri chhati, yaklakht bhigti hoon”
“kapDe bhi tar batar hain aur sakht bhigti hoon”
“jaldi bula le mujhko kambakht bhigti hoon”
kya kya machi hain yaro barsat ki baharen
koi pukarti hai “kya kya mujhe bhigoya”
koi pukarti hai “kaisa mujhe bhigoya”
“nahaq qarar karke, jhutha, mujhe bhigoya”
“yoon door se bulakar, achchha mujhe bhigoya”
kya kya machi hain yaro barsat ki baharen
jin dilabron ki khatir, bhige hain jinke joDe
wo dekh unki ulfat hote hain thoDe thoDe
le unke bhige kapDe hathon mein ghar nichoDe
chira koi sukhawe, jama koi nichoDe
kya kya machi hain yaro barsat ki baharen
kichaD se ho rahi hai, jis ja zamin phisalti
mushkil hui hai wan se har ek ko rah chalni
phisla jo panw pagDi mushkil hai phir sanbhalani
juti gaDi to wan se kya tab phir nikalni
kya kya machi hain yaro barsat ki baharen
kitne to kichDon ki daldal mein phans rahe hain
kapDe tamam gande daldal mein bus rahe hain
kitne uthe hain mar mar, kitne ukas rahe hain
wo duःkh mein phans rahe hain aur log hans rahe hain
kya kya machi hain yaro barsat ki baharen
kahta hai koi gir kar, ye ai khudaye lijo
koi Dagmaga ke har dam kahta hai waye lijo
koi hath utha pukare mujhkon bhi hay lijo
koi shor kar pukare girne na pae lijo
kya kya machi hain yaro barsat ki baharen
phir kar kisi ke kapDe daldal mein hai mua`tar
phisla koi kisi ka kichaD mein munh gaya bhar
ek do nahin phisalte, kuch ismen jaan aksar
hote hain saikDon ke sar niche panw upar
kya kya machi hain yaro barsat ki baharen
ye rut wo hai ki jismen khurdon kabir khush hain
adna, gharib, muflis, shaho wazir khush hain
mashuk shado khurram, ashiq asir khush hain
jitne hain ab jahan mein, sab ai “nazir” khush hain
kya kya machi hain yaro barsat ki baharen
hain is hawa mein kya kya barsat ki baharen
sabzon ki lahlahahat baghat ki baharen
bundon ki jhamjhamawat qatrat ki baharen
har baat ke tamashe har ghat ki baharen
kya kya machi hain yaro barsat ki baharen
badal hawa ke upar ho mast chha rahe hain
jhaDiyon ki mastiyon se dhumen macha rahe hain
paDte hain pani har ja jal thal bana rahe hain
gulzar bhigte hain sabze nha rahe hain
kya kya machi hain yaro barsat ki baharen
mare hain mauj Dabar dariya umanD rahe hain
mor o papihe koel kya kya rumanD rahe hain
jhaD kar rahi hain jhaDiyan nale umanD rahe hain
barse hai munh jhaDa jhaD badal ghumanD rahe hain
kya kya machi hain yaro barsat ki baharen
jangal sab apne tan par hariyali saj rahe hain
gul phool jhaD bute kar apni dhaj kar rahe hain
bijli chamak rahi hai badal garaj rahe hain
allah ke naqare naubat ke baj rahe hain
kya kya machi hain yaro barsat ki baharen
badal laga takoren naubat ki gat lagawen
jhingur jhangar apni surnaiyan bajawen
kar shor mor bagule jhaDiyon ka munh bulawen
pi pi karen papihe meinDhak malharen gawen
kya kya machi hain yaro barsat ki baharen
har ja bichha raha hai sabza hare bichhaune
qudrat ke bichh rahe hain har ja hare bichhaune
janglon mein ho rahe hain paida hare bichhaune
bichhwa diye hain haq ne kya kya hare bichhaune
kya kya machi hain yaro barsat ki baharen
sabzon ki lahlahahat kuch abr ki siyahi
aur chha rahi ghatayen surkh aur safed kahi
sab bhigte hain ghar ghar le mah tab mahi
ye rang kaun range tere siwa ilahi
kya kya machi hain yaro barsat ki baharen
kya kya rakhe hain yarab saman teri qudrat
badle hai rang kya kya har aan teri qudrat
sab mast ho rahe pahchan teri qudrat
titar pukarte hain subhan teri qudrat
kya kya machi hain yaro barsat ki baharen
koel ki kook mein bhi tera hi nam haiga
aur mor ki zatal mein tera payam haiga
ye rang sau maze ka jo subah o sham haiga
ye aur ka nahin hai tera hi kaam haiga
kya kya machi hain yaro barsat ki baharen
bolin baye bateren qumri pukare ku ku
pi pi kare papiha, bagule pukaren tu tu
kya hudahudon ki haq haq kya fakhton ki hu hu
sab rat rahe hain tujhko kya pankh kya pakheru
kya kya machi hain yaro barsat ki maren
jo mast hon idhar ke kar shor nachte hain
pyare ka nam le kar kya zor nachte hain
badal hawa se kar kar ghanghor nachte hain
menDhak uchhal rahe hain aur mor nachte hain
kya kya machi hain yaro barsat ki baharen
phulon ki sej upar sote hain kitne ban ban
so hain gulabi joDe phulon ke haar abran
kitnon ke ghar hai khana sona lage hai angan
kone mein paD rahi hain sar munh lapet sogan
kya kya machi hain yaro barsat ki baharen
jo khush hain wo khushi mein kate hain raat sari
jo gham mein hain unhon par guzre hai raat bhari
sinon se lag rahi hain jo hain piya ki pyari
chhati phate hai unki jo hain birah ki mari
kya kya machi hain yaro barsat ki baharen
jo wasl mein hain unke juDe mahak rahe hain
jhulon mein jhulte hain gahne jhamak rahe hain
jo dukh mein hain so unke sine phaDak rahe hain
ahen nikal rahi hain ansu tapak rahe hain
kya kya machi hain yaro barsat ki baharen
ab birahnon ke upar hai sakht be qarari
har boond marti hai sine upar katari
badli ki dekh surat kahti hain bari bari
hai hai na li piya ne ab ke bhi sudh hamari
kya kya machi hain yaro barsat ki baharen
jab koel apni unko awaz hai sunati
sunte hi gham ko mare chhati hai umDi aati
pi pi ki dhun ko sun kar be kal hain kahti jati
mat bol ai papihe phatti hai meri chhati
kya kya machi hain yaro barsat ki baharen
hai jinki sej suni aur khali charpai
ro ro unhonne har dam ye baat hai sunai
pardesi ne hamari ab ke bhi sudh bhulai
ab ke bhi chhawani ja pardes mein hai chhai
kya kya machi hain yaro barsat ki baharen
kitnon ne apni gham se ab hai ye gat banai
maile kuchaile kapDe ankhen bhi DabDabai
ne ghar mein jhula Dala ne oDhni rangai
phuta paDa hai chulha tuti paDi kaDhai
kya kya machi hain yaro barsat ki baharen
gati hai geet koi jhule pe karke phera
maru ji, aaj kijai yan rain ka basera
hai khush kisi ko aakar hai dard o gham ne ghera
munh zard baal bikhre aur ankhon mein andhera
kya kya machi hain yaro barsat ki baharen
aur jinko ab muhayya husnon ki Dheriyan hain
surkh aur sunahre kapDe ishrat ki gheriyan hain
mahbub dilabron ki zulfen bikheriyan hain
jugnu chamak rahe hain raten andheriyan hain
kya kya machi hain yaro barsat ki baharen
kitne to bhang pi pi kapDe bhigo rahe hain
banhen gulon mein Dale jhulon mein so rahe hain
kitne birah ke mare sudh apni kho rahe hain
jhule ki dekh surat har aan ro rahe hain
kya kya machi hain yaro barsat ki baharen
baithe hain kitne khush ho unche chhua ke bangle
pite hain mai ke pyale aur dekhte hain jangle
kitne phire hain bahar khuban ko apne sang le
sab shad ho rahe hain umda gharib kangle
kya kya machi hain yaro barsat ki baharen
kitnon ko mahlon andar hai aish ka nazara
ya sayeban suthra ya bans ka usara
karta hai sair koi kothe ka le sahara
muflis bhi kar raha hai pule tale guzara
kya kya machi hain yaro barsat ki baharen
chhat girne ka kisi ja ghul shor ho raha hai
diwar ka bhi dhaDka kuch hosh kho raha hai
dar dar haweli wala har aan ro raha hai
muflis so jhopDe mein dil shad so raha hai
kya kya machi hain yaro barsat ki baharen
muddat se ho raha hai jinka makan purana
uth ke hai unko meinh mein har aan chhat pe jana
koi pukarta hai tuk mori khol aana
koi kahe hai chal bhi kyoon ho gaya diwana
kya kya machi hain yaro barsat ki baharen
koi pukarta hai lo ye makan tapka
girti hai chhat ki mitti aur sayeban tapka
chhalni hui atari kotha nidan tapka
baqi tha ek usara so wo bhi aan tapka
kya kya machi hain yaro barsat ki baharen
uncha makan jiska hai pach khanan sawaya
upar ka khan tapak kar jab pani niche aaya
us ne to apne ghar mein hai shor ghul machaya
muflis pukarte hain jane hamara jaya
kya kya machi hain yaro barsat ki baharen
sabzon pe wirabhuti tilon upar dhature
pissu se machchhron se, roe koi basore
bichchhu kisi ko kate, kiDa kisi ko ghure
angan mein kansalai, konon mein khankhajure
kya kya machi hain yaro barsat ki baharen
phunsi kisi ke tan mein, sar par kisi ke phoDe
chhati ye garmi dane aur peeth mein dadauDe
kha puriyan kisi ko hain lag rahe maDoDe
ate hain dast jaise dauDen iraqi ghoDe
kya kya machi hain yaro barsat ki baharen
patli jahan kisi ne dal aur kaDhi pakai
makkhi ne wohin boli aa unt ki bulai
koi pukarta hai kyoon khair to hai bhai
aise jo khanste ho kya kali mirch khai
kya kya machi hain yaro barsat ki baharen
jis gul badan ke tan mein poshak sosani hai
so wo pari to khasi kali ghata bani hai
aur jis pe surkh joDa ya udi oDhni hai
us par to sab ghulawat barsat ki chhani hai
kya kya machi hain yaro barsat ki baharen
badnon mein khap rahe hain khubon ke lal joDe
jhamken dikha rahe hain pariyon ke lal joDe
lahren bana rahe hain laDkon ke lal joDe
ankhon mein chubh rahe hain pyaron ke lal joDe
kya kya machi hain yaro barsat ki baharen
aur jis sanam ke tan mein joDa hai zafrani
gulnar ya gulabi ya zard surkh dhani
kuch husn ki chaDhai aur kuch nai jawani
jhulon mein jhulte hain upar paDe hai pani
kya kya machi hain yaro barsat ki baharen
koi to jhulne mein jhule ki Dor chhoDe
ya sathiyon mein apne panw se panw joDe
badal khaDe hain sar par barse hain thoDe thoDe
bundon mein bhigte hain lal aur gulabi joDe
kya kya machi hain yaro barsat ki baharen
kitnon ko ho rahi hai us aish ki nishani
sote hain sath jiske kahti hai wo siyani
is waqt tum na jao ai mere yar e jani
dekho to kis maze se barse hai aaj pani
kya kya machi hain yaro barsat ki baharen
kitne sharab pikar ho mast chhak rahe hain
mai ke gulabi aage pyale chhalak rahe hain
hota hai nach ghar ghar ghunghru jhanak rahe hain
paDta hai meinh jhaDa jhaD table khaDak rahe hain
kya kya machi hain yaro barsat ki baharen
hain jinke tan mulayam maide ki jaise loi
wo is hawa mein khasi oDhe phire hain loi
aur jinki muflisi ne sharm o haya hai khoi
hai unke sar pe sar ki ya boriye ki khoi
kya kya machi hain yaro barsat ki baharen
kitne phire hain oDhe pani mein surkh pattu
jo dekh surkh badli hoti hai un pe lattu
kitnon ki gaDi rath hain kitnon ke ghoDe tattu
jis pas kuch nahin hai wo hum sa hai nikhattu
kya kya machi hain yaro barsat ki baharen
jo is hawa mein yaro daulat mein kuch baDhe hain
hai unke sar pe chhatri hathi pe wo chaDhe hain
hamse gharib ghoraba kichaD mein gir paDe hain
hathon mein jutiyan hain aur payenche chaDhe hain
kya kya machi hain yaro barsat ki baharen
hai jin kane muhaiya pakka pakaya khana
unko palang pe baithe jhaDiyon ka his uDana
hai jinko apne ghar mein yan lon tel lana
hai sar pe unke pankha ya chhaj hai purana
kya kya machi hain yaro barsat ki baharen
kitne khushi se baithe khate hain khush mahl mein
kitne chale hain lene baniye se qarz pal mein
kandhe pai dal, aata haldi girah ki bal mein
hathon mein ghi ki pyali aur lakDiyan baghal mein
kya kya machi hain yaro barsat ki baharen
koi raat ko pukare “pyare main bhigti hoon”
“kya teri ulfton ki mari main bhigti hoon”
“i hoon teri khatir aa re main bhigti hoon”
“kuchh to taras tu mera khare main bhigti hoon”
kya kya machi hain yaro barsat ki baharen
koi pukarti hai “dil sakht bhigti hoon”
“kanpe hai meri chhati, yaklakht bhigti hoon”
“kapDe bhi tar batar hain aur sakht bhigti hoon”
“jaldi bula le mujhko kambakht bhigti hoon”
kya kya machi hain yaro barsat ki baharen
koi pukarti hai “kya kya mujhe bhigoya”
koi pukarti hai “kaisa mujhe bhigoya”
“nahaq qarar karke, jhutha, mujhe bhigoya”
“yoon door se bulakar, achchha mujhe bhigoya”
kya kya machi hain yaro barsat ki baharen
jin dilabron ki khatir, bhige hain jinke joDe
wo dekh unki ulfat hote hain thoDe thoDe
le unke bhige kapDe hathon mein ghar nichoDe
chira koi sukhawe, jama koi nichoDe
kya kya machi hain yaro barsat ki baharen
kichaD se ho rahi hai, jis ja zamin phisalti
mushkil hui hai wan se har ek ko rah chalni
phisla jo panw pagDi mushkil hai phir sanbhalani
juti gaDi to wan se kya tab phir nikalni
kya kya machi hain yaro barsat ki baharen
kitne to kichDon ki daldal mein phans rahe hain
kapDe tamam gande daldal mein bus rahe hain
kitne uthe hain mar mar, kitne ukas rahe hain
wo duःkh mein phans rahe hain aur log hans rahe hain
kya kya machi hain yaro barsat ki baharen
kahta hai koi gir kar, ye ai khudaye lijo
koi Dagmaga ke har dam kahta hai waye lijo
koi hath utha pukare mujhkon bhi hay lijo
koi shor kar pukare girne na pae lijo
kya kya machi hain yaro barsat ki baharen
phir kar kisi ke kapDe daldal mein hai mua`tar
phisla koi kisi ka kichaD mein munh gaya bhar
ek do nahin phisalte, kuch ismen jaan aksar
hote hain saikDon ke sar niche panw upar
kya kya machi hain yaro barsat ki baharen
ye rut wo hai ki jismen khurdon kabir khush hain
adna, gharib, muflis, shaho wazir khush hain
mashuk shado khurram, ashiq asir khush hain
jitne hain ab jahan mein, sab ai “nazir” khush hain
kya kya machi hain yaro barsat ki baharen
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रघुबीर यादव
स्रोत :
पुस्तक : नज़ीर ग्रंथावली (पृष्ठ 448)
संपादक : नज़ीर मुहम्मद
रचनाकार : नज़ीर अकबराबादी
प्रकाशन : उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान
संस्करण : 1992
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