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भ्रमणगाड़ी-6

bhramangaDi 6

अनुराधा महापात्र

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अनुराधा महापात्र

भ्रमणगाड़ी-6

अनुराधा महापात्र

और अधिकअनुराधा महापात्र

    मिट्टी का तेल खोजने जाने पर दिखाई देंगे कवियों के घर

    बादल गरजने पर भूख टूट जाती

    प्यार की बात पे याद आती है केवल फाल्गुनी राय की

    सोचता हूँ कुछ दिन और जीवित रहने पर शायद हो जाती भेंट

    कुछ-कुछ झरे हुए फागुन की तरह, मायामय धीर, इधर-उधर मारे फिरते

    बुड्ढे का मुँह देखकर पलायन अरब सागर में

    और नुचे हुए समुद्री चिड़ियों के डैनों पर—

    नारी जन्म की शेष सूर्य-आभा कौंधेगी

    खोया हुआ नीड़ और अंडा आज, युद्ध का रसायन;

    कलकत्ता - तुम रास्ते-रास्ते कहाँ खो जाते हो!

    किसी दिन किसी कवि के नहीं,

    नहीं किसी प्रेमिका के

    आधुनिक काल के भी नहीं,

    किसी उद्धार कल्प की सीढ़ी भी नहीं,

    किसी दिन साहित्य के बड़े घराने के भी नहीं,

    किसी दिन क्रांति एवं ख़बरों की मातृभाषा नहीं

    होते हो केवल गहरे अप्रेम की - केवल चढ़े धतूरे की - तरह तुम

    कलकत्ता केवल भवा पागल का ही देश नहीं, जानता हूँ—

    फिर भी कलकत्ता छिन्नमूल - विदेशियों का -

    ईरानी काजल लगाए स्वप्न देखता कलकत्ता

    तुम्हारे मृत विद्रोही, और जर्जर क्रांति के कलकत्ता

    करबी फूल की दोपहरी की आभा वाले कलकत्ता

    धीरे-धीरे मातृहीन अंधकार, उन्माद से भरकर

    पागल भवा अंतहीन अभियान नृत्य करता है।

    फाल्गुनी राय : अकाल मृत्युग्र्स्त एक प्रतिभाशाली बांग्ला कवि

    भवा पागल : एक प्रसिद्ध बाउल

    स्रोत :
    • पुस्तक : शब्द सेतु (दस भारतीय कवि) (पृष्ठ 101)
    • संपादक : गिरधर राठी
    • रचनाकार : कवयित्री के साथ अनुवादक समीरबरन नंदी और प्रयाग शुक्ल
    • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
    • संस्करण : 1994

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