बैलेंस
bailens
वह लौट रही है काम से
एक भीड़ भरी बस में
एक हाथ में बैग दूसरे से हैंडरेल पकड़कर
बैलेंस बनाती हुई।
वह बस से बाहर देख रही है
कारों में बैठी हुई औरतें को
रेडलाइट पर खड़ी, एफ़.एम. सुनती हुई औरतों को।
पार्किंग में खड़ी है दहेज में आई कार
ए… से एक्सेलेरेटर, बी... से ब्रेक
उसे कुछ भी याद नहीं है
वह ड्राइविंग पूरी तरह भूल चुकी है अब।
वह अपनी आँखें बंद करती है कुछ देर
कुछ याद करती है
और मुस्कुरा देती है।
उतरते हुए सटकर उतरते हैं लड़के
छूकर कर निकलते हैं अधेड़
और कुटिल हँसी हँसते हैं कुछ वृद्ध।
वह बिल्कुल ख़ामोश है
उसे जल्द लौटना है घर।
वह लौट रही है काम से
मन की ख़रोंचों के साथ
हैंडरेल की पकड़ को बार-बार मज़बूत करके
बैलेंस बनाते हुए।
वह बस स्टैंड पर चुपचाप उतरती है
इधर-उधर देखती है
कि कोई बड़ा उसे ऐसे न देख ले।
वह आस्तीनों को अन्फ़ोल्ड करती है
गले से स्कार्फ़ उतारती है
और अपने बैग में रख लेती है।
वह नीले रंग के मैचिंग दुपट्टे को
जल्दी-जल्दी ओढ़ती है आँखों के नीचे तक
और मुड़ जाती है गली में
तेज़ क़दमों से बैलेंस बनाती हुई।
- रचनाकार : अशोक कुमार
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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