पाँच साल पहले यहाँ घड़ी नहीं थी
मैं तब आदमी था आज खच्चर हूँ।
पाँच साल पहले यहाँ राशनकार्ड नहीं था,
मैं तब हवा था, आज लट्टू हूँ*
मैं तब मैं था, आज कोड़ा हूँ;
जो अपने पर बरस रहा है।
मैंने चाँद को देखा,
वह बाल्टी भर दूध हो गया।
सिर्फ़ पाँच वर्ष में,
शराब की बोतल
मिट्टी के तेल की बोतल में बदल गई।
घड़ी मेरे बच्चे के पाँच साला जीवन में
आतंक की तरह खड़ी है।
यह मेरी नहीं मेरे बच्चे की कृति है,
इसलिए मुझसे बड़ी है।
यह मेरी कृति नहीं है।
मैं समय से या तो पहले हूँ या बाद में,
मैं समय में नहीं हूँ;
अपने समय में तो बिल्कुल नहीं हूँ।
मैं किसी भी तरह सही नहीं हूँ।
यह जो घड़ी गढ़ी गई है,
वह मेरे बच्चे की करीगरी है।
वह जन्म से ही समय को जानता है,
इसलिए बाप को बेवक़ूफ़ मानता है।
उसके लिए मैं सिर्फ़ घोड़ा हूँ,
मेरे कान उसके हाथों की लगाम हैं।
आप धोखा मत खाइए
ये कान कहाँ हैं।
बच्चे के हाथ में समय की लगाम है।
मैं सही कह रहा हूँ
मेरा वक़्त या तो बीत गया
या बीता नहीं,
पर यह बच्चा समय पर सवार है
देखिए तो घड़ी से इसको दिली प्यार है।
इसकी जाल और रेखाहीन
नरम हथेलियों में
समय लार की तरह जड़ा है।
समय मेरे बच्चे की मुट्ठी में
मेहँदी-सा रचा है,
वह झुनझुने की तरह उसे बजाता है
जो मुझसे नहीं हो सका,
मेरा बच्चा कर दिखाता है।
मैं पीछे जा रहा हँ,
बच्चा आगे बढ़ रहा है।
मैं अपनी उम्र में पिछड़ रहा हूँ।
अपने बच्चे के कारण,
मैं वायदे से मुकर रहा हूँ।
अपनी ज़िंदगी बचाकर रख रहा हूँ,
अपना काम पूरा नहीं कर रहा हूँ,
सच कहूँ तो,
किसी तरह अपना समय पूरा कर रहा हूँ,
मैं एक-एक दिन घड़ी की तरह गिन रहा हूँ।
मैं बहुत कष्ट में था,
इसलिए भ्रष्ट नहीं हुआ
पर नष्ट हो गया।
मैं इस पर नमक की तरह जान छिड़कता हूँ,
मैं बच्चे को प्यार करता हूँ।
यह बच्चा आदमी की कली है,
जो मेरे कंधे पर खिली है।
फूल ख़ुशबू के सिवा कहाँ बोलते हैं,
वे शब्द नहीं देते गंध के रंग घोलते हैं।
समय सुनता नहीं,
वह कुछ कहता नहीं है,
बच्चे के लिए ध्वनि रंगहीन है,
जो कुछ है दृश्य है।
विचार को यह हाथ से पकड़ता है
यह संवाद को देखता है
यह बच्चा दृश्य सुनता है
दृश्य का इसकी आँख से नहीं
हाथ से नाता है।
यह उसे मुस्कुराकर समझाता है।
इसका चेहरा जीभ से चौड़ा है।
इसने अभिव्यक्ति को
फींचकर निचोड़ा है।
शब्द को तोड़कर मरता हुआ छोड़ा है।
यह चीज़ों को नाम से नहीं
काम से जानता है।
यह सभ्यता से पहले का
आदिम समुदाय है।
प्रतीक और संकेत इसके डाक-तार हैं।
यहाँ ध्रुपद, धमार और ख़याल
अँधेरा टटोल रहे हैं।
रवि शंकर और कुमार गंधर्व
मात्र हिलते हुए हाथ और होंठ हैं।
घर में जमे तनाव को वह सूँघ लेता है।
वह कारण नहीं जानता
लेकिन गहराई में डूबता है।
वह पिता की आँख देखकर हँसता है,
माँ की भौंह देखकर रोता है।
भाषा की यहाँ ज़रूरत नहीं है
घर में शांति की क़िल्लत नहीं है।
यहाँ अनुभूति और अभिव्यक्ति के बीच
मुनाफ़ाख़ोरी नहीं है।
इसकी दुनिया में दलालों का भविष्य
सुरक्षित नहीं है।
घड़ी का निर्माता मेरी अवधि की तरह
गूँगा है, बहरा है
लेकिन उसने वक़्त को कसकर पकड़ा है।
तीस वर्ष का बच्चा
अब घुलता नहीं रहेगा
समय बोलेगा, घड़ी बोलेगी
सभ्यता के भेद खोलेगी
यह समय को वक़्त बताएगी
इसे अपनाइए
आपके बहुत काम आएगी
देखो-देखो—
उसके होंठ धड़क रहे हैं
आँखें मुस्करा रही हैं
वह ध्वनि से सूरज रच रहा है
वह लहरों की तरह
उन्मुक्त बह रहा है।
उसका हृदय होंठ हो गया
वह इंद्रधनुष उगल रहा है।
यह हकलाना नहीं है,
यहाँ टूट-फूट नहीं है।
सिटकनी हटाकर
भाषा की खिड़की खोल रहा है।
वह हवा पर चल रहा है।
वह काली दीवार तोड़ रहा है
वह शब्दों की तरह
यहाँ से वहाँ दौड़ रहा है।
पाँच वर्ष का यह बच्चा
तीस बरसों की
तीस ज़ुबानें बोल रहा है।
- पुस्तक : कवि ने कहा (पृष्ठ 35)
- रचनाकार : इब्बार रब्बी
- प्रकाशन : किताबघर प्रकाशन
- संस्करण : 2012
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