बाबू घूम रहा हूँ देस
बड़े बड़े लोगों का देस
बनियों पूँजीपतियों का देस
किसिम किसिम के विज्ञानियों
अकादमिकों कलाकारों का देस
ग़रीबनवाज़ों धरतीपुत्रों तारणहारों
सटोरियों दलालों राजनेताओं का देस
दानवीरों टैक्सचोरों
कई कई दिनों तक अन्न जल न खाने वालों का देस
लेरूआ पुआल गुल्ली गोली
खेत सिवान और नीम की गूदी
और खोट्टल की दुनिया से निकलकर
चैंधियाते हुए देख रहा हूँ
कि तुम्हारी दुनिया और उनके देस का जंजाल
कितना अलग है
कि सबकी दुनिया और सबके जंजाल हैं
अलंकरण हैं सम्मान हैं
सबकी प्रतिस्पर्धाएँ हैं
शिखर पर पहुँचने की चाह है
कुछ कुछ तुम्हारी दुनिया की तरह
जिसमें तुम रखते हो प्रतिस्पर्धा
बड़े ही भोलेपन से
कभी तो धान के मोखे से
कभी आलू की गोलाई को लेकर
तो सबसे करिया भैंस
बड़े बड़े डिल्ल के बैल को लेकर
तुम्हारी लाठी की मूठ
यहाँ तक कि तुम्हारे खाँसने में भी
शामिल रहता है एक शिल्प
एक बहुत ही ख़ूबसूरत तराश
तुम्हें अलग करती है दूसरों से
उम्र की इस ढलान में भी
गिलहरी की भाँति चढ़ जाते हो
बहुत ही ऊँचे खुरदुरे पेड़ों पर
कि वे हमेशा पड़ जाते हैं तुमसे छोटे
गाँव के अखाड़े में तुम वर्षों अव्वल थे
आठ दस हाथ तो आज भी कूद जाओ
पलक भाँजते ही
ख़ैर...
अभी तक जो भी देख चुका हूँ
इतना घूमने के बाद देस
तो बता दूँ
और तुम बता देना
अपने प्रतिस्पर्धी संगी साथियों को
कि बड़ी रटन से गाई जाती है
किसानों की महिमा
लगाए जाते हैं उनके लिए
लाल क़िले से नारे
उनके दुख दर्द पर होती हैं ख़ूब सारी गोष्ठियाँ
जिनसे टपकता है रस
फगुआ के तुम्हारे अल्हड़ गीत-सा
और पता चलती है एक बात
बहुत सारे निष्कर्षों के बीच
कि वे लोग बने रहना चाहते हैं
तुम्हारे दुःख दर्द में
और तुम भी बने रहोगे लंबे समय तक
गोष्ठियों में
चुनावी वादों में
लंबे समय तक होते रहेंगे
तुम्हारी दशा पर चिंतन और शोधकार्य
सुधारा जाता रहेगा तुम्हारा जीवन-स्तर
लंबे समय तक।
- रचनाकार : अखिलेश सिंह
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
Additional information available
Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.
About this sher
Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.
rare Unpublished content
This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.