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कौमी एकता

kaumi ekta

जुमई खाँ 'आजाद'

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कौमी एकता

जुमई खाँ 'आजाद'

और अधिकजुमई खाँ 'आजाद'

    कौमी एकता कै मलवा हम देखाई फेरि के।

    गालिब के गुलशन माँ गूंजी तुलसी कै चौपाई।

    केहू भजनियाँ सूरदास कै, केउ मीरा कै गाई।

    कौनो खझड़ी बजावै कबिरा का टेरि के।

    कौमी एकता कै मलवा हम देखाई फेरि के॥

    गाँधी जी कै त्याग तपस्या लोहिया कै कुरबानी।

    चला गदेलवउ तोहैं सुनाई भक्ती भरी कहानी॥

    आवा गंगा जी कै पानी हम पियाई ढेरि के।

    कौमी एकता कै मलवा हम देखाई फेरि के॥

    अब्दुल हमीद कै थाती प्राण पियारी माटी।

    आपन धरम संजोआ भइया पोरखन कै परिपाटी॥

    कैइसे लइ जाई परोसी फुलवा का तोरि के।

    कौमी एकता कै मलवा हम देखाई फेरि के॥

    घर आँगन चौपरिया मंहकी, मंहकी ताल तिराई।

    ठुमुकि चली पनघट का गोरिया बौरि चली अमराई।

    गइहैं गितिया लुगाई मिलि कलाई जोरि के।

    कौमी एकता कै मलवा हम देखाई फेरि के॥

    तू बगिया कै माली बनि के करत रह्या रखवारी।

    टोंट केहू मारइ पावै केशर की फुलवारी।

    क्यारी-क्यारी फूल फुलाई रंग बसंती घोरि के।

    कौमी एकता कै मलवा हम देखाई फेरि के॥

    कितना सेनुर माँग उतरिगा यही दिना की ताँई।

    जियत जिंदगी हमना देखवै दुश्मन कै परछाँई।

    चाही वतिया जराई खुनवा माँ बोरि के।

    कौमी एकता कै मलवा हम देखाई फेरि के॥

    चला शहीदन की मजार पर सब केउ दिया जराई।

    माटी चंदन से बढ़ के आवा तिलक लगाई।

    आवा बिगुल बजाई भाई बहियाँ सिकोरि के।

    कौमी एकता कै मलवा हम देखाई फेरि के॥

    स्रोत :
    • रचनाकार : जुमई खाँ 'आजाद'
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए शैलेंद्र कुमार शुक्ल द्वारा चयनित

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