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हमरी बेड़ा पार केह्या

hamri beDa paar kehya

अनीस देहाती

अनीस देहाती

हमरी बेड़ा पार केह्या

अनीस देहाती

और अधिकअनीस देहाती

    तीन लोक चौदहौ भुवन मा,

    किरपा जेकै बनी अहै।

    दया-धरम के करवइया पै,

    सुख के छतुरी तनी अहै।

    भगै दलिद्दर सौ जोजन तक,

    दया कै बदरी घनी अहै।

    सोवत-जागत, चलत-चलावत,

    चरचा जेकै ठनी अहै।

    वई राम जी! दुनिया के,

    जड़-चेतन कै उद्धार केह्या।

    सब पै किरपा के होया,

    तौ हमरी बेड़ा पार केह्या।

    जे किरपा के गठरी खोले,

    झोरी भरै भिखारी कै।

    मया-मोह के पुतरी खोले के,

    सब दुख हरे पुजारी के।

    मरजादा रहि जाय बनी,

    ना काम किहने हुसियारी कै।

    पउतै हुकुम भयें बनवासी,

    मन राखेन महतारी कै।

    वई रामजी! भव मा बूड़ी तौ,

    रचि के उलझार देह्या।

    सब पै किरपा के होह्या,

    तौ हमरी बेड़ा पार कैह्या।

    छिन मा लाल करै जे धरती,

    छिन मा मंद बयार बनै।

    जे थोरेन चुरिके हम सबके,

    डोंगा के पतवार बनै।

    दया-धरम के डोल सँवारे,

    भगत-गले कै हार बने।

    कुसुआरी के किरवा तक कै,

    पंचौ जै रखवार बनै।

    वई रामजी! भेद केह्या जिन,

    सबकै ऊँच मोहार केह्या।

    सब पै किरपा कै होया तौ,

    हमरौ बेड़ा पार केह्या।

    गणिका अउर अजामिल तारे,

    तारे सदन कसाई जे।

    पलक झपकतै जानि गए हैं,

    केवट के चतुराई जे।

    भगत बिभीसन तक का मानें,

    आपन अस सग भाई जे।

    कवियन के मन-मंदिर बइठा,

    करत अहैं कविताई जे।

    वई राम जी! हम अनाथ पै,

    रोज नवा उपकार केह्या।

    सब पै किरपा के होया,

    तो हमरौ बेड़ा पार केह्या।

    ऊँच-नीच के भेद मिटाइस,

    सबका गले लगाइस जे।

    देख पियासा गीधराज का,

    पानी का उठि धाइस जे।

    नर-वानर सबका एक जानिस,

    सब कै जिउ हुलसाइस जे।

    कुल-परिवार तारि केवट,

    सबरी घर भोग लगाइस जे।

    वई राम जी। कलजुग के,

    ढोंगिन कै बँटाधार केह्या।

    सब पै किरपा के होया तौ,

    हमरौ बेड़ा पार केह्या।

    पानी मा पानी जिन मिलवा,

    झूरेव मा जलजोग करा।

    पलथी मारे मठ मा बइठा,

    अब जिन मोहनभोग करा।

    कबिरावाली साफ चदरिया,

    ओ‌ह्मा जिन अब खोंग करा।

    कलजुगहा देउता की नाई,

    कला करा जिन ढोंग करा।

    घिरी अँधेरिया दुखियन के घर,

    ओनहुँ के भिन्सार केह्या।

    सब पै किरपा के होया तौ

    हमरी बेड़ा पार केह्या।

    जे पाए बा जउनै आसन,

    अस बइठा की जाम भवा।

    छल-परपंच, दगा-बेइमानी,

    उनके चारी धाम भवा।

    राम-नाम से काम निकारैं,

    हमरै पातर चाम भवा।

    सरेआम चौरस्ते पै,

    हमरिन इज्जत कै दाम भवा।

    ढर्रा नीक देखावा इनका,

    ना मानें तौ मार केह्या।

    सब पै किरपा के होया,

    तौ हमरौ बेड़ा पार केह्या।

    स्रोत :
    • रचनाकार : अनीस देहाती
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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