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पोल खोली, कुछ बोली, डोलि जाई, का करी,

ओनकी जफड़ी मा कसत इज्जत बचाई, का करी?

बूँद भै जानैं हमरी जात कै औकात जे,

वहि समुंदर की लहर कै गीत गाई, का करी?

फूस की मड़ई मा बनि बारूद हम पैदा भए,

आग देखी तौ भभकि के बरि जाई, का करी?

छाँव की खातिर पसीना खून से सींचा किहे,

झोंझ से माटा झरैं तौ मुँह नोचाई, का करी?

पूत जौ पूछै बमकि के बाप से तू का किह्या,

बेचारा हाथ मलि के रहि जाई, का करी?

स्रोत :
  • पुस्तक : आधुनिक अवधी कविता (पृष्ठ 154)
  • संपादक : अमरेन्द्र नाथ त्रिपाठी
  • रचनाकार : आद्या प्रसाद 'उन्मत्त
  • प्रकाशन : राजकमल
  • संस्करण : 2020

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