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देखा फिर आई बा होली

dekha phir aai ba holi

अनुज नागेंद्र

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देखा फिर आई बा होली

अनुज नागेंद्र

और अधिकअनुज नागेंद्र

    जिउ थर-थर, थर-थर काँपि जाए देखतय होलिहा‍रन कै टोली।

    देखा फिर आई बा होली।

    पहिले जब होली आवइ तौ मनई कै जिउ हुलसाइ जाइ।

    ढोलक कै थाप परइ काने तौ फगुनी मस्‍ती छाइ जाइ।

    संझवइ से बइठ दुआरे पै ‍मिलजुलि के फगुआ गाइ जाइ।

    मुल अब होली कै नाउ सुने सबकइ जियरा घबराइ जाइ।

    कब बिना बात के निकरि परइ फगुऔ के दिन कट्‍टा गोली।

    देखा फिर आई बा होली।

    गोझिया पकवान भिनउखै से पहिले घर-घर माँ बना करैं।‍

    जेकरेन दरवाजे पहुंचि जाय ठंड‍ई-भंग खोब छना करै।

    ओहमूँ हुडदंगी लरिकन कै अलगै खुसियाली मना करै।

    अब मेल मोहब्‍बत कहॉं रही बस बात-बात माँ ठना करै।

    मुँह सबइ फुलाए बइठ अहैं ‍हम केहसे बतियाई-बोली।

    देखा फिर आई बा होली।

    होली माँ होय ठिठोली खोब पहिले देवर भउजाई कै।

    चटकीला खेदैं घोरि-घारि बल्‍टी माँ गोबर गाई कै।

    कनई रबदा सब लेहे जुटा अजमावैं जोर कलाई कै।

    अब केहुकै नीयत ठीक नहीं बा नौबत हाथापाई कै।

    इज्जत पै डाका डारि देंय कइ डावैं तार-तार चोली।

    देखा फिर आई बा होली।

    बाबा-दादा कै अदब रहा सब लरिकय ओनसे डरा करैं।

    उखमज से बाजि आवैं मुल ओनके आगे परा करैं।

    जे केउ अपुवा से बड़ा रहै सब ओहकै ‍इज्जत करा करैं।

    अब केहू लफंगन का बरजै तौ मारि-पी‍टि अधमरा करैं।

    चे‍हरा पै ‍करिखा पोति देयॅं के टीकत बा चन्‍दन-रोली।

    देखा फिर आई बा होली।

    होलई माता देतू असीस बैमनस गॉंव से भागि जात।

    आपस कै मेल मोहब्‍बत फिर मनई के जिउ माँ जागि जात।

    भाईचारा के डोरा से कथरी समाज कै तागि जात।

    कुछ अइसी‍ हवा बहत माई दुसमनौ गले से लागि जात।

    पहिलेन की नाईं मिलिजुलि के सब खुसी मनावैं हमजोली।

    देखा फिर आई बा होली।

    स्रोत :
    • रचनाकार : अनुज नागेंद्र
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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