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औरतों की कार्रवाई

aurton ki karrwai

ओम प्रभाकर

ओम प्रभाकर

औरतों की कार्रवाई

ओम प्रभाकर

और अधिकओम प्रभाकर

    कुछ औरतों ने अपने संदूक़

    और कुछ ने अपनी पोटलियाँ

    बाहर लाकर

    सड़कों पर रख दी हैं।

    निस्तेज और अवाक् हैं पुरुष और

    बच्चे उत्तेजित और सक्रिय।

    घरों में

    एक बेहद बौखलाया हुआ सन्नाटा व्याप्त है

    भीतर से बाहर तक।

    औरतों की कार्रवाई की ख़बर

    भूमिहीन किसानों और

    मज़दूरों तक पहुँच गई है और

    अब वे सब

    आज के काम पर जाने के बारे में

    पुनर्विचार कर रहे हैं।

    टैक्सी वालों ने

    अपने मीटर ऊपर कर दिए हैं।

    छोकरे बजाय धोने के

    प्लेटें चाटने लगे हैं।

    रिक्शे वाले उतर कर सीटों से

    खड़े हो गए हैं हैंडिल पकड़ कर

    सड़क के बीचों-बीच।

    इक्कों-ताँगों के घोड़े करने लगे हैं

    नालदार मार्कटाइम।

    अब दोपहर है

    और सूर्य अत्यंत प्रखर

    दफ़्तरों में जो रोज़ होता था इस समय

    आज नहीं हो रहा।

    यद्यपि औरतों ने अभी

    अपने घर नहीं छोड़े हैं

    केवल संदूक़ और पोटलियाँ

    बाहर लाकर रखी हैं अपनी-अपनी

    फिर भी

    बहस का मुद्दा बदलने लगा है और

    हवा में एक घुमाव भरा

    भारीपन गया है।

    स्रोत :
    • पुस्तक : साक्षात्कार 40-41 (पृष्ठ 129)
    • संपादक : सोमदत्त
    • रचनाकार : ओम प्रभाकर

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