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और राष्ट्रभक्ति थी

aur rashtrbhakti thi

आयुष झा

आयुष झा

और राष्ट्रभक्ति थी

आयुष झा

और अधिकआयुष झा

    बारिश कहीं नहीं थी

    बारिश में भींगता कौआ था

    कौआ कहीं नहीं था

    कौए की चोंच में रोटी का टुकड़ा था

    रोटी कहीं नहीं थी

    खेत में लहलहाती गेंहू की बालियाँ थी

    खेत कहीं नहीं था

    किसानों के माथे पे कृषि ऋण का कलंक था

    सरकार कहीं नहीं थी

    सरकार के रूप में कुछ साहूकार थे

    और संसद में जूट की खेती थे

    और किसानों के गले पर रस्सी की गाँठ थी

    भीड़ थी, नारे थे

    नारों में जय जवान जय किसान था

    सरहद पर ज़ैतून के

    ज़र्द पत्तों की आँधी की शक्ल में

    कुछ सैनिक थे

    कुछ क़दम अपने भीतर खिसक कर

    बच्चों के लिए खिलौने ख़रीदते हुए

    प्रजातंत्र के जूते के नीचे मूर्च्छित जय किसान था

    नदियों के होठों पर त्राहिमाम-त्राहिमाम

    राष्ट्र है या कुश्ती का यह अखाड़ा कोई

    जो बिहार में लंगोट

    मुंबई में वही छप्पन इंच

    मीडिया में जाँघ पर ताल

    और शासन-काल बकरी की पीठ से फिसलकर

    धूल फाँक रहा पहलवान था

    राष्ट्र कहीं नहीं था

    सिर्फ़ राष्ट्रभक्ति थी

    और और और राष्ट्रभक्ति थी

    राष्ट्र के गले में टाई बाँधने में मशग़ूल

    झूला झूल रही राष्ट्रभक्ति

    हमारा राष्ट्र टाई पहनकर इम्तिहान देने जाएगा

    इम्तिहान में शायरी पढ़कर ज़ीरो नंबर लाएगा

    विद्वता भैंस की पीठ में बैठ जुगाली कर रही थी

    कोई दूध दूहने में पी-एच.डी. था

    कोई लाठी भाँजने में एम.बी.बी.एस.

    बचे-खुचे मुट्ठी भर पढ़े-लिखे लोग

    घास छिलने में व्यस्त थे

    जो जितना बड़ा मूर्ख वह उतना बड़ा विद्वान था

    और मानचित्र पर प्रगतिशील हिंदुस्तान था।

    स्रोत :
    • रचनाकार : आयुष झा
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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