हम रह रहे हैं एक ख़तरनाक समय में
इस एक वाक्य को मैं लिखता हूँ जितनी बार
यह वाक्य होता जाता है उतनी बार और भी ख़तरनाक
और मैं हो जाता हूँ उतनी ही बार
और भी सशंकित
और इस समय के पैबंद को दुरुस्त करने
बिलों से निकलने लगते हैं ढेर सारे बुलबुले
प्रधानमंत्री अपने प्रशंसकों के बीच
बजाते हैं बाँसुरी
लेकिन इस ख़तरनाक समय में नहीं निकलती है
उससे कोई मधुर आवाज़
प्रधानमंत्री इस ख़तरनाक समय पर करने लगते हैं चिंता
और यह समय होता जाता है और भी ख़तरनाक
मैं जितनी बार लिखता हूँ यह वाक्य
उतनी बार भीड़ में कर लिया जाता हूँ चिन्हित
उतनी बार मेरी तरफ़ बढ़ने लगते हैं हाथ
उतनी बार पेड़ से झड़ जाते हैं ढेर सारे पत्ते
मैं लिखता हूँ समय को ख़तरनाक
और लोगों की भीड़ पीटने लगती है मेरा दरवाज़ा
माँ की गोद में दुबक जाती है तीन साल की मेरी बेटी
भाप बनकर उड़ने लगती है कच्चे पत्तों पर
सुबह-सुबह गिरी हुईं ओस की बूँदें
मेरे सामने खड़ा हो जाता है
सरकार का एक नुमाइंदा, एक वरिष्ठ मंत्री और एक दिन
ख़ुद इस देश का प्रधानमंत्री
मुझसे पूछा जाता है मेरा नाम
मेरा रंग, मेरी पहचान
मेरी भाषा, मेरी आत्मा और मेरा उसूल
और इस तरह यह समय
मेरे लिखने न लिखने से परे और भी हो जाता है ख़तरनाक।
- रचनाकार : उमाशंकर चौधरी
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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