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और अब कहीं दिल नहीं लगता

aur ab kahin dil nahin lagta

शैलेंद्र साहू

शैलेंद्र साहू

और अब कहीं दिल नहीं लगता

शैलेंद्र साहू

और अधिकशैलेंद्र साहू

    हम लोग बहुत जल्दी डर गए हैं

    उम्र का पहाड़ चढ़ने से पहले ही

    थक गए हैं

    बैठने की इजाज़त नहीं

    चलते हुए ही

    सुस्ताना होगा

    खड़े-खड़े थककर

    गिर जाने का मन करता है

    मर जाने का मन करता है

    जल्दी में घरों से निकले थे

    या निकाले गए थे याद नहीं

    और अब कहीं दिल नहीं लगता

    हम लोग बहुत

    जल्दी भर गए हैं

    अतृप्त इच्छाओं से

    धोखे के घावों से

    लिजलिजी प्रार्थनाओं से

    जबकि सामने शायद अभी

    एक लंबी उम्र का पहाड़ है

    चढ़ने

    गिरने

    सँभलने

    फिसलने

    के लिए

    पर क्या करें—

    अब कहीं दिल नहीं लगता :

    कहीं भी तो नहीं…

    स्रोत :
    • रचनाकार : शैलेंद्र साहू
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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