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अद्भुत से भग्न कण्ठरव से कोई

adbhut se bhagn kanthraw se koi

अनुवाद : नवारुण वर्मा

सनंत ताँती

सनंत ताँती

अद्भुत से भग्न कण्ठरव से कोई

सनंत ताँती

और अधिकसनंत ताँती

    सनन्त सनन्त...अद्भुत-से भग्न कण्ठरव से कोई चीख़ उठा

    आर्तनाद कर टूट गिरे धरती पर

    सैंकड़ों हज़ारों तारे।

    आर्तनाद में शब्दहीन बरसात

    ‘होशियार हो’

    हृदय के अभ्यन्तर में किसी ने उठा ली

    रायफ़ल

    दुख के करुण निशीथ में।

    फिर...

    सनन्त सनन्त...अद्भुत-से भग्न कण्ठरव से कोई चीख़ उठा

    मानो जर्मनी, मानो फ़्रांस, मानो स्पेन,

    मानो लैटिन अमेरिका,

    मानो मध्य-पूर्व की किसी ज़बान में

    अभी-अभी चीख़ उठा हो विजयोल्लास में

    तरुण योद्धा कोई...

    उसके दिगन्त...विस्तृत नेत्रों में

    उसके प्रबल हृद् स्पंदन में

    उसके चिकने शरीर पर से बहते पसीने में

    सूचना दे गई उनींदी चिड़िया कोई!

    सनन्त सनन्त...अद्भुत-से भग्न कण्ठरव से कोई चीख़ उठा

    और सनन्त टूट गिरा टुकड़े-टुकड़े होकर

    सनन्त बरसात बनकर आसमान से

    शब्द बनकर मिल गया हवा में

    मिट्टी बन, बन रेत-कण,

    अणु-परमाणु बन

    और एक से दस

    दस से हज़ारों-लाखों नक्षत्रों-जैसा

    जगमगा उठा

    उतारकर छाती पर से चट्टान, लगा मुझे

    कोई अभी-अभी चीख़ उठा

    अद्भुत-से भग्न कण्ठरव से

    सनन्त सनन्त...

    स्रोत :
    • पुस्तक : भारतीय कविताएँ 1984 (पृष्ठ 30)
    • संपादक : बालस्वरूप राही
    • रचनाकार : सनन्त ताँती
    • प्रकाशन : भारतीय ज्ञानपीठ
    • संस्करण : 1986

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