करो अपनी भाषा पर प्यार।
जिसके बिना मूक रहते तुम, रुकते सब व्यवहार॥
जिसमें पुत्र पिता कहता है, पत्नी प्राणाधार
और प्रकट करते हो जिसमें तुम निज निखिल विचार।
बढ़ाओ बस उसका विस्तार
करो अपनी भाषा पर प्यार॥
भाषा बिना व्यर्थ ही जाता ईश्वरीय भी ज्ञान,
सब दोनों से बहुत बड़ा है ईश्वर का यह दान।
असंख्य हैं इसके उपकार।
करो अपनी भाषा पर प्यार॥
यही पूर्वजों का देती है तुमको ज्ञान-प्रसाद,
और तुम्हारा भी भविष्य को देगी शुभ-संवाद।
बनाओ इसे गले का हार।
करो अपनी भाषा पर प्यार॥
- पुस्तक : मैथिलीशरण गुप्त ग्रंथावली-3 (पृष्ठ 73)
- संपादक : कृष्णदत्त पालीवाल
- रचनाकार : मैथिलीशरण गुप्त
- प्रकाशन : वाणी प्रकाशन
- संस्करण : 2008
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