बाहर से प्रवेश करते हैं भीतर
मुस्कुरा कर स्वागत करते चेहरे
चाय पानी देने खाना परोसने वाले...
दीवार और हवा की ख़ुशबू सब
धीरे-धीरे सुंदर फेड आउट दृश्य की तरह...
नए शहर में आधी रात प्रवेश!
ज़िम्मेदार कर्मचारी से नज़र आते
पीलाई रोशनी फेंकते लैंपपोस्ट...
अँधेरे की चादर ओढ़े साफ़-सुथरी चौड़ी सड़कें
इस वक़्त एकदम खाली...कोई चिल्ल पों नही
गिट्टियाँ और कोलतार चैन की साँसें ले रहे...
न फूटपाथ की दुकानें...
सिर्फ़ कुछ कुत्ते इधर-उधर
सायरन मारती पुलिस की गाड़ियाँ...
चुपचाप खड़े पेड़ों से प्रेम उमड़ता है...
बेहद कम रोशनी में बस्ती की दीवारों का विस्तार
आराम फरमाते लोग बाग़।
देखे गए सपनों के दृश्य की तरह
रात्रि के तीसरे प्रहर में
सोए शहर में दनदनाती रेल गाड़ी
अपना शहर अपना घर याद आता है...
साथ मिलकर खाना
बातें करते मियाँ बीबी...
प्रेम के मंसूबों में खोई लड़की
बियर के नशे में थिरकन-लुढकन को छुपाता लड़का...
...अच्छा लगता है जब
रात में कोई होटल हमें कमरा देता है
पानी चाय और खाना देता है...
शहर से प्रेम और रात की वीरानगी
असमाप्त यात्राएँ हैं ज़िंदगी की।
सलामत रहे तारों की छाँव में
ज़िंदगी की शहरी यात्राएँ...
...
निर्गुण संतों द्वारा बहुप्रयुक्त पंक्ति
- रचनाकार : मनोज मल्हार
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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