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अंदर झाँकती हूँ तो खुलता है किवाड़

andar jhankti hoon to khulta hai kivaD

यशस्वी पाठक

यशस्वी पाठक

अंदर झाँकती हूँ तो खुलता है किवाड़

यशस्वी पाठक

और अधिकयशस्वी पाठक

    अंदर झाँकती हूँ तो खुलता है किवाड़

    मशीन वाले कमरे का

    सब कुछ दीखता है भीतर

    मशीन वाले कमरे जैसा

    इस कमरे का दिल

    पानी की टंकी का इंजन था

    इंजन के नाफ़ का हिस्सा

    कमरे के वायव्य कोण में गाड़ दिया गया था

    कि धरती के सूखते हलक़ से

    पानी खींच लाने की अथक मेहनत से

    खिसक जाए किसी दिन इंजन की नाभि

    सालों-साल अपने कमरे में

    फटफटाता, धकधकाता, अगझता रहा इंजन

    अपने अपने कमरों में जैसे रँभाते हैं हम

    आस-पास के खेतों की

    रबी, ख़रीफ़ और जायद होती थीं मगन

    जिन्हें देख मेरा बाबा ख़ुश होता था

    बाबा को देख मेरी अम्मा

    मशीन वाला कमरा पागल था

    लोग भी बेनियाज़ थे उसकी बाबत

    उसके भीतर अपनी स्मृति

    अपनी महत्ता खो चुकी इतनी चीज़ें थीं कि

    जिनसे बनाई जा सकती थी पूरी-पूरी गृहस्थी

    नहीं था उसके भीतर कुछ भी ऐसा

    जिसमें ज़रा भी कम हो जिजीविषा

    वहाँ जो कुछ था वैराग्य पैदा करता था—

    एक धुंधला शीशा और टूटे दाँतों वाली बूढ़ी कंघी

    मोबिल-केरोसिन, उबासी लेती घड़ी

    यूरिया-पोटाश, खरी, बेरन, पोषाहार

    झौआ, मुंगरी, दबिला, तसला, पाइप, फरुहा, टूटा गिटार

    अनाज ओसाने का पंखा, तराज़ू-बटखरा

    बासी पेपरों के दो-चार गट्ठर

    निमंत्रण-पत्रों के बंडल

    मकड़े के जाले, मूसों की लेड़ियाँ

    देवी-देवताओं की खंडित मूर्तियाँ

    मेहमानों का इस्तक़बाल करती दो चौकियाँ

    जिस पर सोती थीं बिल्लियाँ

    सूती कुर्ते और फटी धोतियाँ

    खद्दर की बदरंग चादर, चार-पाँच दरियाँ

    एक टूटी पलँग, पाँच बिड़वा, दो मचिया

    हैंगर में टँगी फफूँदज़दा जैकेट

    पत्तल, दोनों के पैकेट

    सब्ज़ियों-फूलों के बीज, ग़ज़लों के कैसेट

    नेगेटिव ख़ाकों की रील, एक पेट्रोमैक्स

    अलमारी में बिखरी अठन्नी-चवन्नी, ताले और चाभियाँ

    मुरचाई निब पेन और स्याही की शीशियाँ

    मज़दूरों के कप, प्लेट और गिलास

    सैकड़ों नामों वाली एक डायरी

    रखती थी जो लग्न में मिले रुपयों का हिसाब

    पत्रिकाओं, किताबों के ढेर

    ढेर के नीचे दीमकों की रेल

    पागल कमरे की दिलजोई करने

    खिड़की से आई थी

    मोगरे की एक बेल

    इन्हीं रद्दी-भद्दी, आधी-पौनी

    कटी-छँटी, मिटी-बची

    तमाम तमाम वस्तुओं से अटा था

    मशीन वाला कमरा

    अंदर झाँकती हूँ तो खुलती है किवाड़

    मशीन वाले कमरे की

    मशीन वाला कमरा पागल था

    लोग भी बेनियाज़ थे उसकी बाबत

    मैं भी।

    स्रोत :
    • रचनाकार : यशस्वी पाठक
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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