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आलमारी के सामने औरत

almari ke samne aurat

प्रमोद बेड़िया

प्रमोद बेड़िया

आलमारी के सामने औरत

प्रमोद बेड़िया

और अधिकप्रमोद बेड़िया

    औरत बैठी है

    आलमारी खोलकर

    एक साड़ी निकालकर

    वापस रख दी,

    शायद

    उसके बीते हुए समय में

    ढलती नहीं है अब

    कोई दूसरी ही सही

    जो फीके पड़ चुके समय में

    समाएगी

    फिर कुछ रखा निकाला,

    ब्लाउज़ का

    हुक सिलाई कर रही है

    देखती है :

    आलमारी में क्या-क्या

    जैसे बीते हुए दिनों को

    खोज रही है

    मन-मगन यह उसकी

    छोटी-सी दुनिया है

    इस तरह ही उसका

    निहायत अपना समय

    बीतते जाता है।

    स्रोत :
    • पुस्तक : पृथ्वी पर पानी की तरह (पृष्ठ 11)
    • रचनाकार : प्रमोद बेड़िया
    • प्रकाशन : प्रतिश्रुति प्रकाशन
    • संस्करण : 2017

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