उत्तर मे हिम शैलाच्छादित
दक्षिण मे जे गंग नहाथि
पूब पुरनका कौशिकी
पश्चिम गंडक धरि जाथि।
इएह रहै चौहद्दी मिथिला
बाँटल भेलै अछि दू देश
एमहर भाग बिहारे कहबै
ओमहर कहबै ओ मधेश।
बोली- बानी, टोन-टोन मे भने
होउक अदली बदली
मुदा ऐहि भाखाक मूल मे
सभतरि अछि ई मैथिली।
प्रकट भेली सीता जतय
ओ धन्य पुनौरा गाम
परव्रह्म आएल छला
स्वयं जनकपुर धाम।
मृदुल बोल छै सरस जत
सबहुक अनुपम बानि
माटि एकर हल्लुक, तन्नुक
मिठगर एतहुक पानि।
दर्शन, न्यायक छल जतय
पीठ अनेकहु भेद
सुग्गहु जतय पढ़ैत छल
न्याय वाक्य आ वेद।
वाचस्पति, मंडन एतय
विद्यापति केर गीति
नहि ककरहुसँ याचना
अयाचीक छल नीति।
सुमन, मधुप आ किरण जत
हरिमोहन केर सङ्ग
दिनकर, आरसी बनल तत
मिथिला केर वहु रङ्ग।
विद्या, वैभव, ऐश्वर्यक छल
एतय सम्मलित बाना
शस्य श्यामला हरित भूमि- छल
बहुतो कल करखाना।
प्रजातंत्र केर भेंट चढ़ल
हम्मर मिथिला आइ
केओ नहि नायक बनल
जे करितय अगुआई।
प्रकृतिक छै मारलि मिथिला
कखनो बाढ़ि तँ छनहि सुखार
नगद फसिल अलोपित भेलै
भेटियो नै रहलै रोजगार।
भाखा सहजहिं चढ़ल श्रूब पर
विद्यालय मे आहुति पड़लै
धीरे धीरे कल कारखाना
एक एक के अलोपित भेलै
जाति-पाति मे जनता बँटलै
राशि-राशि के बानी छँटलै
नेता अलगे आगि लगौलकै
जनता गर मे फानी फँसलै।
एक सूत्र नहिं बान्हल रहतै
जाबत मिथिलाक लोक
ताबत एकर विकास ने हेतै
कतबो कोसिस हौक।
यद्यपि बहुतो जन लागल
अपना-अपना ढंगेँ
कए रहलाह प्रयास बहुत
विविध रूप आ रंगेँ।
किंतु बहुत खगता छै
एकबेर मिलिके जोर लगाबी
मिथिला,मैथिल,मैथिलीक
सभ चिंता दूर भगाबी।
- पुस्तक : नमहर हो चद्दरि जटबए (पृष्ठ 100)
- रचनाकार : अमरनाथ झा ‘अमर’
- प्रकाशन : अनुप्रास प्रकाशन
- संस्करण : 2021
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