धूप अविलंब खा जाती है उसकी परछाईं
बारिश चुपचाप मिटा देती है उसके पदचापों के निशान
अकेला आदमी ख़ुद का पीछा करते हुए भी अकेला होता है
उसकी आत्मा के छालों पर भी दूसरों का अधिकार
अकेले आदमी की कल्पना में अनगिनत गड्ढ़े
वह मरुस्थल में मृगतृष्णा का पीछा करते नहीं मरता
रेती के धँसने की प्रतीक्षा करता है
अपना ही हाथ अपने ही हाथ में लेकर
अकेले रहने की प्रतिज्ञा करता है
अकेले रहना भले ही उसकी मजबूरी न हो
अकेले रहने का चुनाव वह मजबूरी में करता है
नदी में डूब जाने पर द्वीप नहीं तलाशता
जीवन का कोई स्वप्न भूल नहीं पाता
अँधेरे में मौलिकता छानकर पी जाता है
अकेला आदमी प्रेरित कविताएँ नहीं लिखता
वायुमंडलीय दाब महसूस करता उसका सिर
हवा में टकराता रहता है
अपने अकेलेपन को जीवित रखने के सिवा
उसके पास जीवित रहने की कोई वजह नहीं होती
अकेले आदमी का लैंप दिन भर जलता है
रात भर जलती हुई मोमबत्ती सालती है उसे
अकेला आदमी
अंतस से बाह्य तक
अर्थ से भाव तक
सिर से पाँव और
शहर से गाँव तक
अकेला होता है
उसके रोशनदान से सिर्फ़ आती है प्राणवायु
जालीनुमा खिड़की से अनगिनत टुकड़ों में बँटता है सूरज
रोशनी के लिए भी नहीं खुलता उसका दरवाज़ा
अफ़सोस कि सभी का होने की चाहत में
वह टुकड़ों में बँटा और किसी का न हो सका*
आर्द्र मन में संगीत की कोई लहर नहीं उठती
प्रतीक्षारत आँखों में किसी का स्वप्न नहीं ठहरता
अकेले आदमी को सिर्फ़ याद रहती है
दम तोड़ती किसी की पीली हँसी
ख़ुद से बाहर निकलना उसके लिए कब मुश्किल था
हाशिए पर खदेड़े गए अकेले आदमी से अधिक
सामाजिक दुनिया में कोई नहीं हो सकता
अकेला आदमी वह दुर्घटनाग्रस्त पुलिया है
जिस पर एक साथ चलने की मनाही होती है
अकेला आदमी वह निर्माणाधीन सड़क है
जिसके आगे दिशा-परिवर्तन का बोर्ड लगा है
शुरुआत में अकेला आदमी अकेला दिखाई नहीं देता
तदोपरांत अकेला आदमी दिखाई नहीं देता
कालांतर में अकेला आदमी गुलर का फूल हो जाता है
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* श्रीकांत वर्मा की कविता-पंक्तियाँ
- रचनाकार : सत्यम तिवारी
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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