करुणा केवल यहाँ ऊँटों की आँखों में है
मनुष्यों के पास तो आँखें ही नहीं हैं
उबलते डामर की सड़कों पर चल-चलकर
उनकी बुद्धि को मोतियाबिंद हो गया है
और मैं भी इसी अहमदाबाद नगर में बसता हूँ
मेरे आस-पास भी एक हल्की-सी मोतियाबिंदी परत छाने लगी है
निरोझ-क्वालिटी का एयरकंडीशनर भट्ठीयार गली की साँसें छीनने को प्रयासरत है
और यह भट्ठीयार गली मणीनगर की रंडियों की परछाइयाँ सँवारती है
साबरमती नदी की रेत यहाँ के प्रत्येक मार्ग पर पथराई हुई है
जबकि सारे रास्ते बाढ़ के इंतज़ार में हैं
साबरमती आश्रम गाँधी ने मछलियाँ पकड़ने हेतु नहीं बनाया था
और न उसे घाट पर नहाने आती अहमदाबादी सुंदरियों के साथ रास-लीला करनी थी
उसे तो साइकिल-रिक्शा चलाते अहमद शाह को ऑटो रिक्शा दिलानी थी
किंतु यह अहमदाबाद बलवंतराय मेहता की कार के मार्ग पर थूकने से
और इंदुलाल याज्ञिक की टोपी में सिर जमाने से ही बाज़ नहीं आ रहा
कल सरखेज की क़ब्र में से अहमद शाह का घोड़ा हिनहिनाया था।
कल आदम जब मेरे दरवाज़े पर दस्तक देकर पूछेगा कि मेरी दी उन संवेदनाओं का क्या हुआ?
तब मैं लाल दरवाज़े पर एक रुपए में बूट-पॉलिश कर देने को सहमत हुए लड़के की उँगली पकड़कर
अहमदाबाद से फ़रार हो जाऊँगा।
- पुस्तक : सदानीरा
- संपादक : अविनाश मिश्र
- रचनाकार : मणिलाल देसाई
- प्रकाशन : सदानीरा पत्रिका
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