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अगर तुम्हारी पत्थर-सी भौं

agar tumhari patthar si bhaun

बा. सी मर्ढेरकर

बा. सी मर्ढेरकर

अगर तुम्हारी पत्थर-सी भौं

बा. सी मर्ढेरकर

और अधिकबा. सी मर्ढेरकर

    तुझे गालियाँ दी जी-भर पर

    आया तेरे पद पर लौटता हुआ,

    मुट्ठी में नाक दबाकर, लगाये

    तप्त नयन तेरे नयनों से।

    कब जनमी थी पृथ्वी? जभी

    नीली हवा की ईंटे क्रम से

    कब

    और उस जड़ता में कब

    मन-मन का पोत आया?

    और तेज की नील नीलिमा में से

    जैसे नीलम चंपा फूले

    स-पोत संज्ञा में से वैसे

    अनुभूतियों के थाले खिले

    इस तेज में से देखे

    क्या?

    और किसे खोजे?

    दलिद्दर के आग लगी है

    पैरों के नीचे यही अचेतन ?

    शोक व्यर्थ, यह ताकत मिटेगी

    आसमान की तप्त जिऊँगा।

    अगर, तुम्हारी पत्थर-सी भौं

    आँखों के सामने से ज़रा-सी सरख

    तूझे गालियाँ दीं जी-भर पर

    आया तेरे पद पर लौटता हुआ,

    मुट्ठी में नाक दबाकर, लगाये

    तप्त नयन तेरे नयनों से।

    स्रोत :
    • पुस्तक : भारतीय कविता 1954-55 (पृष्ठ 591)
    • रचनाकार : बा. सी. मर्ढेकर
    • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी

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