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आदमीनामा

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संजय कुंदन

संजय कुंदन

आदमीनामा

संजय कुंदन

और अधिकसंजय कुंदन

    जब भी कहा जाता है मुझसे कि

    पता नहीं आप आदमी हैं कि क्या हैं

    तो मुझे लगता है कि आदमी होकर भी

    अपने को आदमी कहलवा लेना आसान नहीं है

    इसका एक रास्ता यह है कि

    आप अपने को आदमी मानना ही छोड़ दें

    और तोता बन जाएँ

    जो सामने पड़े उसी की भाषा दोहराते जाएँ

    या फिर एकदम चुप हो जाएँ और

    शरीर को इस तरह झुकाएँ कि मेज़ नज़र आएँ

    दूसरों को रखने दें टाँगें अपनी पीठ पर

    जो जितना कम आदमी रहता है

    वह उतना ज़्यादा आदमी समझा जाता है

    और उसकी तारीफ़ में कहा जाता है...

    क्या आदमी है!

    स्रोत :
    • रचनाकार : संजय कुंदन
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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