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अच्छे आदमी

achchhe adami

संतोष कुमार चतुर्वेदी

और अधिकसंतोष कुमार चतुर्वेदी

    अच्छे आदमी

    अच्छे बने रहने की फ़िराक़ में रहते हैं हमेशा

    वे चिंतन जैसी मुद्रा बनाए रहते हैं हर वक़्त

    और तब तलक अपनी ज़ुबान नहीं खोलते

    जब तलक उनकी अच्छाई पर खरोंच लगने लगे

    अच्छे आदमी को

    अपने अलावा कुछ भी अच्छा नहीं लगता इस संसार में

    वे इतने अच्छे होते हैं कि

    धूल का एक धब्बा तक बर्दाश्त नहीं कर पाते अपनी क़मीज़ पर

    नज़ला से तुरंत बहने लगती है उनकी नाक

    अच्छे आदमी

    अच्छा खाते-पीते-पहनते हैं

    और इतना अच्छा सोचते हैं कि

    दुनिया का हर भूखा-प्यासा-नंगा

    उन्हें गँवार दिखाई पड़ता है

    जिन्हें इसी बिना पर इस दुनिया में जीने-रहने का कोई हक़ नहीं होना चाहिए

    अच्छे आदमी

    अक्सर अपनी बातों में बताते हैं

    कि ख़ून-पसीना एक कर बेहतर बनाई जा सकती है यह दुनिया

    हालाँकि ज़रूरत पड़ने पर भी वे लांघ नहीं पाए अपने ही घरों की दहलीज़ तक

    अच्छे आदमी

    मोम की तरह सुकुमार होते हैं

    जो थोड़ी भी आँच बर्दाश्त नहीं कर पाते

    और ग़ायब हो जाते हैं परिदृश्य से तुरंत ही

    अच्छे आदमी

    अक्सर चुप रहते हैं

    क्योंकि चुप्पी में दोतरफ़ा धार होती है

    और अगर बोलना ही पड़ा किसी कारणवश

    तो बोलते हैं इस तरह कि दोस्त से लेकर दुश्मन तक

    सब उनकी बातों में अपने-अपने मतलब की चीज़ें तलाश लेते हैं

    अच्छे आदमी

    इतने अच्छे होते हैं कि

    उनसे कभी भी पूछा जा सकता है यह

    कि अच्छे आदमी क्योंकर अच्छे होते हैं

    जिसके जवाब में उनके गले से सिर्फ़ हकलाहट की आवाज़ आती है

    अच्छे आदमी

    बुराई से कोसों दूर भागते हैं

    और इस बात को अनसुना कर देते हैं हमेशा

    कि केवल अच्छी-अच्छी बातों से

    दुनिया कभी भी अच्छी नहीं बन सकती

    अच्छे आदमी

    अक्सर अपनी अच्छाइयों में ही खो जाते हैं इस क़दर

    कि वे सिर्फ़ योजनाएँ बनाने में मशग़ूल रहते हैं

    बुराई से लड़ने की हिम्मत नहीं जुटा पाते कभी

    अच्छे आदमी

    दरअसल, आवर्त सारणी के ख़ाली पड़े उस खाने जैसे होते हैं

    जिनके तत्त्वों की खोज किया जाना बाक़ी है आज भी।

    स्रोत :
    • रचनाकार : संतोष कुमार चतुर्वेदी
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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