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अभी

abhi

अभी बरसकर इकट्ठा हुए पानी के चहबच्चों में

उन स्मृतियों के बिंब थे

जिन्हें अब तक

जिया नहीं गया था।

इस रात्रि पानी की स्मृति में

एक ऐसी यात्रा बैठ गई थी जिसे शेष था

अभी किया जाना।

पृथ्वी पर खिलकर बिखरे फूल—

जो पानी पर तैर रहे थे,

अभी तक मन के उद्यान में खिले ही थे।

अभी हृदय धड़कना था

पानी पर गिरते पत्ते की ध्वनि पर।

उनसे होकर बीतती हवा

किसी अज्ञात किनारे खड़े हम तक अभी बहनी थी।

अभी हमें देखना था

बंद आँखों से उस पार खड़े अपना चेहरा

जो ताकता था कहीं गहरे शून्य में।

अभी ठहरा था निर्वात में,

अचेतनता में पुकारा हुआ कोई शब्द,

अभी वह शब्द तुम्हारा नाम होना था।

स्रोत :
  • रचनाकार : योगेंद्र गौतम
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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