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अभी देखना है

abhi dekhana hai

केशव शरण

केशव शरण

अभी देखना है

केशव शरण

और अधिककेशव शरण

    दूर ऊपर पेड़ पर

    जहाँ केवल चिड़िया उतर सकती हे

    या सिर्फ़ लंगूर जा सकता है

    क्या कहाँ से

    उस पतंग को

    ला सकता है

    वह ढाई पसली भर का लड़का

    जो तीन चौथाई ऊँचाई चढ़ तो गया है

    लेकिन जहाँ है—वहीं पर—ठहर गया है

    क्या हिम्मत छूट रही है उसकी

    और वह डर गया है

    या हिम्मत इकट्ठा कर रहा है

    देखकर आगे के ख़तरे और चुनौतियाँ?

    उसकी ज़िंदगी और मौत के दरमियाँ

    उसकी जीत और हार के बीच

    नहीं कुछ अजीब

    जो इस वक़्त

    किसी की नब्ज़ रुकी हुई है तो

    किसी की नज़्म

    नब्ज़ जिसकी रुकी हुई है

    वह कह भी नहीं पा रहा लड़के से—

    उतर आओ नीचे

    क्यों जान देते हो एक पतंग के पीछे

    जो होगी रुपए-आठ आने की

    बाज़ार में बहुत-सी बिकती हैं

    ज़िंदगी कितनी क़ीमती है

    बड़े भाग्य से मिलती है

    और नज़्म जिसकी रुकी हुई है

    सोच रहा—यह उसके पौरुष की परीक्षा की घड़ी है

    जिस पर उसके जीवन की गति और दिशा टिकी है

    यदि वह उतार लाता है पेड़ से पतंग

    और दिखाता है फिर से उसे आसमान में उड़ाकर

    भविष्य में फिर कोई बाधा नहीं रोक पाएगी उसे

    उसके रास्ते में आकर

    और कहीं उस पर डर छाया

    और वह उतर आया

    बिना लिए हुए पतंग

    होगा पलायनवादी और समझौतापरस्त

    आगे चलकर

    नज़्म रुकी हुई है...

    नब्ज़ रुकी हुई है...

    मगर रुका नहीं है वह

    क्या होता है आगे

    अभी देखना है यह...

    स्रोत :
    • पुस्तक : साक्षात्कार 273 (पृष्ठ 93)
    • संपादक : भगवत रावत
    • रचनाकार : केशव शरण

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