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अ-श्रुत

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गंगाप्रसाद विमल

और अधिकगंगाप्रसाद विमल

    एक भभआता हुआ धुआँ है हम सबके ऊपर।

    हम सबके ऊपर अंतरिक्ष के रंगों का अँधेरा है

    हम सबके ऊपर मृत्यु है। अनिर्वचनीय।

    निर्णयों की दलदल से बाहर नहीं हो पाते

    निर्णयों के संदर्भ झूठे हैं। खोखले। फिर भी हम उन्हें

    लगातार प्यार किए जाते हैं।

    एक झूठ को लगातार बाँधे हुए। हम सब प्रतिबद्ध हैं।

    कौन-सा रास्ता है जिसे हम जानते हैं।

    सिर्फ़। विज्ञान-कुविज्ञान और तर्क

    सिर्फ़। आकृतिवान संशय और संपृक्त मोह।

    रुक गए हैं रास्ते

    एक कार्पेट-गोला समय के साथ खुलता है।

    खुलता ही चला जाता है।

    एक दृश्य-खुलता है। खुलता ही जाता है।

    एक अंधकार जो हम सबके ऊपर है। अनिर्वचनीय।...

    अब तक शताब्दी थी, समय मोह और काल प्रहार

    अब तक हाथ ख़ाली थे और दिमाग़ भरे हुए

    अब तक सिर्फ़ चित्र थे, अर्थ थे, सब कुछ

    और अब : एक आकारहीन धुआँ है। धुँधलका

    लयहीन स्वर यात्राएँ और आधारहीन पड़ाव

    एक बड़े चक्र में प्रतीक्षा—प्रतीक्षा

    एक मुँह खुलने की : प्रतीक्षा—प्रतीक्षा

    एक अंधकार घिरने की प्रतीक्षा—प्रतीक्षा

    इतिहास के बाल में घुलने की : प्रतीक्षा।

    आतंक यात्राओं में निकल पड़ने का क्रम…

    निर्णयों के लबादों का उतरने का क्रम…

    स्रोत :
    • पुस्तक : विजप (पृष्ठ 11)
    • रचनाकार : गंगाप्रसाद विमल
    • प्रकाशन : राधाकृष्ण प्रकाशन
    • संस्करण : 1967

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