44वें जन्मदिन पर डॉक्टर इवा हजारी की याद
44wen janmdin par doctor iwa hajari ki yaad
प्रियदर्शन
Priyadarshan
44वें जन्मदिन पर डॉक्टर इवा हजारी की याद
44wen janmdin par doctor iwa hajari ki yaad
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मुझे नहीं मालूम डॉ इवा हजारी
कि अब आप इस दुनिया में हैं भी या नहीं
अगर हैं तो कहाँ हैं
और किस हाल में हैं
न मैं आपको पहचानता हूँ और न आप मुझे पहचानती है
फिर भी हमारे-आपके बीच एक डोर है
डोर जीवन की, जो सबसे पहले आपने थामी थी।
माँ की कोख से मुझे बाहर निकाला था
मेरी गर्भनाल काटी थी
और मुझे दुनिया की बाँहों में सौंप दिया था
मेरे जिस्म पर, मेरे वजूद पर,
मेरे होने पर,
जो पहला स्पर्श पड़ा, वह आपका था
और मेरे जन्म की वह कहानी बताते-बताते माँ की आँखें अक्सर चमक उठती थीं
यह प्रसंग छेड़कर वह अक्सर राँची के सदर अस्पताल के
उस ऑपरेशन थिएटर में पहुँच जाती थी
जहाँ 24 जून 1967 की रात वह दर्द से कराहती लेटी थी
और फिर एक ममतामय-सी बंगाली डॉक्टर ने
उसे सहलाया था, तसल्ली और भरोसा दिलाते हुए,
और बताते-बताते हँस पड़ती थी माँ
कि उसे कुछ पता नहीं चला जब एनिस्थिसिया दिया गया
`जब आँख खुली तो बग़ल में तुम लेटे थे।‘
कहानी यहाँ ख़त्म नहीं शुरू होती है डॉक्टर
वह युवा लड़की जिसे आपने मातृत्व की सौगात दी थी—मेरी माँ,
अब इस दुनिया में नहीं है
जिससे मैं यह कहानी फिर से सुन सकूँ,
और नए सिरे से जी सकूँ
मातृत्व और पारिवारिकता का वह छलछलाता हुआ मान
जिसके कई सिरे अलग-अलग लोगों से जुड़े थे
मेरे कुछ बेख़बर और कुछ चिंतित युवा पिता से
मेरी बिल्कुल लगी रहने वाली नानी-दादी से
और
मेरे भागदौड़ करते मामा-मौसी से।
आज 44 साल बाद ये तार बहुत-बहुत बिखरे-बिखरे हैं मेरी अनजान प्रथमस्पर्शिनी डॉक्टर,
बहुत से लोग अब इस दुनिया में नहीं हैं
और जो बहुत सारे लोग हैं
उनकी दुनिया बदल गई है।
हालाँकि सबको वह क्षण अपनी-अपनी तरह से
अपनी भागीदारी के कहीं ज़्यादा प्रबल साक्ष्यों के साथ याद होगा
क्योंकि पहले भी उनके मुँह से सुनता रहा हूँ
अपने जन्म की मामूली सी कहानी के लगभग ग़ैरमामूली और जादुई लगते ब्योरे।
इन 44 वर्षों में और भी कुछ बदला है, बिखरा है, टूटा है, गंदला हुआ है।
उस सदर अस्पताल को तो आप बिल्कुल पहचान नहीं पाएँगी
जहाँ किसी साफ़-सुथरे कमरे में आपने मेरी माँ की देखभाल की होगी।
सरकारी अस्पताल इन दिनों सेहत का नहीं, बीमारी का घर लगते हैं
और वह राँची शहर भी बहुत बदल गया है
जो उन दिनों एक ख़ामोश क़स्बा रहा होगा।
उस ख़ामोश क़स्बे के इकलौते सरकारी अस्पताल में ही संभव था
कि एक मरीज अपने डॉक्टर से ऐसा नाता जोड़े
जिसकी विरासत अपने बेटे तक छोड़ जाए।
इस बेटे को भी हालाँकि कहाँ से पहचानेंगी आप।
आपके हाथों से तो न जाने कितने नवजात शिशुओं ने जीवन का वरदान ग्रहण किया होगा,
लेकिन आप इस दुनिया में हों या न हों
आपको यह यक़ीन दिलाना चाहता हूँ
कि आपका दिया हुआ जो जीवन था
उसे अब तक क़ायदे से जिया है डॉक्टर।
ऐसा कुछ नहीं किया
जिससे आपका प्रथम स्पर्श लजाए, ख़ुद को संकुचित महसूस करे।
निश्चय ही इस जीवन में अपनी तरह की तुच्छताएँ आईं, कहीं-कहीं ओछापन भी,
शर्मिंदगी के कुछ लम्हे भी और भय की कुछ घड़ियाँ भी।
कई नाइंसाफ़ियों से आँख मिलाने से बचता रहा
और कहीं-कहीं घुटने भी टेके
लेकिन इन सबसे निकलता रहा मैं, किसी विजेता की तरह नहीं,
बल्कि अपनी हारी हुई मनुष्यता को नए सिरे
से आत्मा का जल देते हुए, भरोसे की थपकी देते हुए।
शर्म करने लायक़ कुछ न करना,
न घुटने टेकना न डरना
नाइंसाफ़ी से आँख मिलाना
और जो सही लगे, उसके साथ खड़ा होने की कोशिश करना सीखते हुए।
हालाँकि यह आसान नहीं है
और जीवन हर रोज़ लेता है नए सिरे से इम्तिहान।
लेकिन इस काम में बहुत सारे हाथ मेरा साथ देते हैं
बहुत सारी निगाहें मुझे बचाए रखती हैं।
वे भी जो दुनिया में हैं और जो दुनिया में नहीं है।
अक्सर तो नहीं, लेकिन कभी-कभी जब बहुत घिर जाता हूँ
तो अचानक एक हाथ अपने कंधों पर पाता हूँ
उस स्त्री का, जो मेरी लंबी उम्र की कामना के लिए जीवित नहीं है
लेकिन जिसकी न जाने कितनी कामनाएँ, लंबी उम्र से लेकर अच्छे जीवन तक की,
मेरे वजूद पर किसी कवच की तरह बनी हुई हैं।
आज अपने 44वें जन्मदिन पर
उसी हाथ को महसूस करते-करते
उन चमकती आँखों की और उन्हीं के सहारे आपकी याद आई डॉक्टर इवा हजारी।
क्या आपको याद है अपने ऑपरेशन टेबल पर लेटी हुई
वह युवा स्त्री, जो मेरी माँ थी?
पता नहीं, आप इस दुनिया में हैं या नहीं,
हैं भी तो कहाँ हैं
लेकिन मेरी स्मृति में, मेरे संवाद में
आपकी उजली उपस्थिति मेरे जीवन को बिल्कुल उस लम्हे, उस कोने तक
ले जाती है, जहाँ से इसकी शुरुआत हुई थी।
वहाँ बस हम तीन थे—आप, मैं और मेरी माँ।
हम तीनों जीवित हैं डॉक्टर।
आख़िर आपने जो जीवन दिया है,
उसमें आपका जीवन भी तो शामिल है,
और मेरी माँ तो मेरे साथ रहेगी ही।
- रचनाकार : प्रियदर्शन
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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