सिर्फ़ तारीख़ें नहीं बदला करतीं समय
sirf tarikhen nahin badla kartin samay
चंद्रकांत देवताले
Chandrakant Devtale
सिर्फ़ तारीख़ें नहीं बदला करतीं समय
sirf tarikhen nahin badla kartin samay
Chandrakant Devtale
चंद्रकांत देवताले
और अधिकचंद्रकांत देवताले
असंख्य आँखों से दिखाई दे रही
चमकती चीज़ों की पीठ के पीछे
स्याह स्मृतियाँ ही नहीं साज़िशें भी हैं ख़तरनाक
वक़्त नहीं है
समय की इस ऊँची कूद को कोई भी नाम दे दो
कुछ आँखें दूसरे समय की आँखों में झाँकती हैं
दहशत ने क्षत-विक्षत कर दिया है जिसका चेहरा
मैं खड़ा हूँ उनके बीच
जिनके पक्ष में नहीं है इस वक़्त न्याय का एक भी शब्द
क्या यह सिर्फ़ एक ही दुनिया है
नहीं कई दुनियाएँ हैं इसी में मथाती हुईं
एक उनकी भी शायद सबसे बड़ी
जिनके नसीब के अँधेरे में
सब कुछ शून्य पहाड़ की तरह ठहरा है
होने और रहने के बीच पता नहीं
यह कैसा छायायुद्ध है जिसकी धुँध में
सच के गवाहों को नहीं दिखाई देता ऐसा कोई रास्ता
जो आदमी के भीतर के बग़ीचे की तरफ़ जाता है
और सदी के बीचोबीच
जिस निहत्थे की प्रार्थना पर दाग़ी गई थी पिस्तौल
दुनिया ने उसे ही घोषित कर दिया है
सदी का श्रेष्ठ मनुष्य
हमने सिर्फ़ उसकी प्रतिमाएँ खड़ी कीं
फिर इतिहास और स्वाभिमान की मरम्मत के नाम पर
देखते-सहते हुए तोड़-फोड़
हम उसकी शताब्दी से गुज़रे
और अपनी विस्फोटक धकापेल में
जीवन के बाहर फेंक दिया उसे
उसी की जयजयकार करते हुए
इधर झूठ और धोखे की भीड़-भगदड़ में
फँसे ठिठुरते असंख्य लोग
पेट और आत्मा के लिए ईंधन ढूँढ़ रहे हैं
नुमाइश में नहीं हैं
गंजे पहाड़ों के झुके कंधे
महान नदियों की कीचड़ सनी आँखें
मातृभाषा के भीतर का भीषण उजाड़
मन्नतों के पथराए होंठ
और सपनों का दुर्भाग्य भी नहीं है
मालिकों की इस शोभायात्रा में
और वे क़ाबिज़ हैं जो बेक़ाबू हैं इस वक़्त
जितनी ताक़त उससे ज़्यादा ओछापन है उनके पास
वे ही सवार हैं रथ पर
खींच रहे जिसे झुंड के झुंड अपराधी
जिनमें कई नए-नए डोमाजी उस्ताद
इतनी चकाचौंध तेज़ रफ्तार
इतना अँधेरा इतना असमंजस
कंप्यूटर के ब्रह्मांड को बेधती इतनी आवाज़ें
बाहर और भीतर भी यातायात जाम
कि विस्थापितों को कुछ भी सूझ नहीं पड़ता
आता है, जाता है—जो भी दिखाई पड़ता है
कहता है एक ही बात वक़्त नहीं है
सचमुच यह कोई नई शुरुआत है
या उसी पुराने दु:स्वप्न का एक बदला दृश्य
क्योंकि सिर्फ़ तारीख़ें ही नहीं बदला करतीं समय
एक के आगे दो या तीन शून्य लगाकर
बेचा जा सकता है महज़ एक चमकदार धोखा
एक दिन जब न्याय माँगने वाले
खोजते हुए ईंधन पा जाएँगे डाइनामाइट
उसी दिन तय होगा
कि अब कौन-सी नई सदी शुरू हुई
किनकी नई सदी।
- पुस्तक : जहाँ थोड़ा-सा सूर्योदय होगा (पृष्ठ 197)
- रचनाकार : चंद्रकांत देवताले
- प्रकाशन : संवाद प्रकाशन
- संस्करण : 2008
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