मखादेव जातक
makhadev jatak
प्राचीन काल में विदेह राज्य की मिथिला नगरी में मखादेव नामक एक धर्मपरायण राजा राज्य करता था। पहले कुमार रहकर, फिर उपराज होकर और अंत में महाराज होकर उसने चौरासी हज़ार वर्ष तक सुखपूर्वक शासन करते हुए अपना समय बिताया था। उसने अपने नापित से कह रखा था—जब तुम मेरे सिर में कोई पका हुआ बाल देखना, तब मुझसे कह देना। इसके बहुत वर्षों के उपरांत एक दिन नापित ने राजा के सिर में एक पका हुआ बाल देखा और राजा को उसकी सूचना दी। राजा ने कहा—वह बाल उखाड़कर मेरे हाथ पर रखो। नापित ने सोने के मोचने से वह बाल उखाड़कर राजा के हाथ पर रख दिया।
उस समय भी मखादेव की आयु के चौरासी हज़ार वर्ष अवशिष्ट थे, पर फिर भी एक पका हुआ बाल देखकर उसको बहुत चिंता हुई। उसे ऐसा जान पड़ने लगा, मानों मृत्यु सामने आकर खड़ी है, अथवा मैं जलती हुई झोंपड़ी में बंद हूँ। उन्होंने अपने आपसे कहा—मूर्ख मखादेव, तेरे बाल पक चले और अभी तक तू पाप वृत्तिका परिहार न कर सका। उस पके हुए बात के विषय में वह जितनी ही चिंता करता था, उसके हृदय—को उतना ही अधिक कष्ट होता था। उसका सारा शरीर पसीने-पसीने हो गया और उसे अपनी वेष-भूषा भार-स्वरूप जान पड़ने लगी। उसने निश्चय किया कि मैं आज ही संसार त्यागकर प्रव्रज्या ग्रहण करूँगा।
मखादेव ने अपने नापित को एक लाख वार्षिक आय की संपत्ति दी और अपने बड़े पुत्र को बुलाकर कहा—पुत्र, अब मेरे बाल पकने लगे और मैं बुड्ढा हो चला। अब तक तो मैंने पूर्ण रूप से मनुष्य काम्य का भोग किया था, पर अब में देव काम्य का भोग करूँगा। मेरा निष्क्रमण-काल आ गया है अतः अब तुम राज्य ग्रहण करो। मैं अब अपने नाम के आम्र वन में जाकर श्रमण वृत्ति ग्रहण करूँगा।
राजा को प्रव्रज्या ग्रहण करने के लिए तत्पर देखकर अमात्यों ने पूछा—महाराज, आप क्यों संसार का परित्याग कर रहे हैं? राजा ने वही पका हुआ बाल हाथ में लेकर कहा—अब देवदूत मेरी आयु का अंत करने के लिए आ गए हैं। मेरे सिर के बाल पकने लग गए हैं। अब मैं व्यर्थ इस मायापाश में बँधकर नहीं रहना चाहता। अब मैं मुक्ति प्राप्त करना चाहता हूँ और इसीलिए प्रव्रज्या ग्रहण कर रहा हूँ।
मखादेव उसी दिन राज्य त्यागकर प्रव्राजक हो गया और अपने नाम के आम्र वन में जाकर रहने लगा। वहाँ चौरासी हज़ार वर्ष तक तपम्या करने के उपरांत उसको पूर्ण ज्ञान हुआ और वह ब्रह्मलोक में पहुँचा। फिर ब्रह्मलोक छोड़कर उसने मिथिला के राजा के घर जन्म लिया। वहाँ उसका नाम निमि पड़ा। अपने सब संबंधियों को एकत्र करके उस जन्म में भी उसने प्रव्रज्या ग्रहण की और उसी आम्र वन में कुछ दिनों तक तपस्या करके ब्र1ह्मविहार*2 का ध्यान करते-करते वह फिर ब्रह्म लोक को चला गया।
- पुस्तक : जातक कथा-माला पहला भाग (पृष्ठ 23)
- प्रकाशन : साहित्य-रत्नमाला कार्यालय
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