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आरामदूषक जातक

aramdushak jatak

अज्ञात

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आरामदूषक जातक

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    वाराणसी के राजा ब्रह्मदत्त के समय में एक बार घोषणा हुई कि अमुक पर्व के उपलक्ष में एक उत्सव होगा। भेरी का शब्द सुनते ही सब नगरनिवासी उत्सव में सम्मिलित होने के लिए दौड़ पड़े।

    उस समय राजा के उद्यान में बहुत से बंदj रहा करते थे। उद्यानपाल ने सोचा कि नगर में पर्व के उपलक्ष में आमोद-प्रमोद हो रहा है। मैं उद्यान में जल सींचने का काम बंदरों के सपुर्द करके आमोद देख आऊँ। बंदरों के दलपति के पास जाकर उसने कहा—इस उद्यान में रहकर तुम लोग अनेक प्रकार के सुख भोगते हो। इसके पुष्प, फल और पल्लव खाते हो। आज नगर में आमोद-प्रमोद हो रहा है। मैं वही देखने जाता हैं। जब तक मैं वहाँ से लौटकर आऊँ, तब तक तुम लोग मिलकर मेरे कुछ वृक्षों में पानी दे दो। बंदरों ने कहा—हाँ हाँ, हम लोग पानी दे देंगे। उद्यानपाल ने कहा—देखो, कहीं ऐसा हो कि भूल जाओ।

    उद्यानपाल ने बंदरों को जल सींचने के लिए चमड़े और काठ के बने पात्र दे दिए। वे पात्र लेकर सब बंदर पौधों में जल देने लगे। इस पर उनके दलपति ने उनसे कहा—देखो, जल व्यर्थ जाए। जल सींचने से पहले पौधे को उखाड़कर यह देख लो कि उसकी जड़ कितनी गहरी है। जिसकी जड़ अधिक गहरी और भारी हो, उसमें अधिक जल दो; और जिसकी जड़ छोटी हो, उसमें कम जल दो; क्योंकि इस समय हमारे पास जितना जल है, उसके समाप्त हो जाने पर और जल मिलना कठिन हो जाएगा। बंदरों ने सोचा कि बात तो बहुत ठीक है। इसलिए वे अपने दलपति के परामर्श के अनुसार काम करने लगे। एक बुद्धिमान मनुष्य बंदरों का यह तमाशा देख रहा था। उसने उससे पूछा—पानी सींचने से पहले तुम लोग एक-एक पौधा उखाड़कर उसकी जड़ क्यों देखते हो? बंदरों ने कहा—हमारे दलपति की यही आज्ञा है। बंदरों का यह उत्तर सुनकर वह सोचने लगा कि जो लोग मूर्ख होते हैं, वे यदि अच्छा काम भी करना चाहते हैं, तो भी काम बिगाड़ बैठते हैं। इसके उपरांत उसने इस आशय की गाथा कही—

    यदि कोई मूर्ख कोई अच्छा काम करना चाहता है, तो भी उससे अनर्थ हो जाता है। इसलिए मूर्ख का कभी विश्वास करना चाहिए। ये मूर्ख बंदर जल सींचने का भार लेकर उद्यान का नाश कर रहे हैं।

    वह बुद्धिमान् पुरुष बंदरों को इस प्रकार भर्त्सना करके अपने अनुचरों सहित उद्यान से बाहर चला गया।

    [बोधिसत्व हो उस बुद्धिमान् पुरुष के रूप में थे।]

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