प्रदर्शनी

pradarshani

अज्ञात

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    नोट

    प्रसतुत पाठ एनसीईआरटी की कक्षा छठी के पाठ्यक्रम में शामिल है।

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    सलमा: सुजाता। कल शाम को मैं तुम्हारे घर गई थी। लेकिन, तुम नहीं मिली।

    सुजाता: हाँ सलमा। मुंबई से मेरी चचेरी बहन रंजना आई है न, मैं उसको लेकर प्रगति मैदान चली गई थी। वहाँ हस्तशिल्प की प्रदर्शनी लगी हुई है। हम दोनों को यह प्रदर्शनी बहुत अच्छी लगी। तुम साथ होती तो और मज़ा आता।

    सलमा: प्रदर्शनी में तुमने क्या-क्या देखा?

    सुजाता: हम दोनों सभी राज्यों के मंडप देखने गए। सभी मंडप ख़ूब सजाए गए थे। अलग-अलग स्थानों पर कई राज्यों के हस्तशिल्पों की प्रदर्शनियाँ लगी हुई थीं। मिट्टी, लकड़ी और बेंत के सुंदर-सुंदर सामान तो थे ही, हाथ की कढ़ाई से कपड़े पर मनमोहक चित्र भी बने हुए थे। इस अवसर पर कई कार्यक्रम हो रहे थे। हम दोनों ने कर्नाटक से आए कलाकारों के यक्षगान और तमिलनाडु से आए कलाकारों के भरतनाट्यम् देखा, उड़ीसा के कलाकारों के ओडिसी नृत्य और केरल के कलाकारों के कुचीपुड़ी देखा, बहुत महा आया।

    सलमा : मुझे भी कत्थक और मणिपुरी नृत्य बहुत अच्छे लगते हैं। प्रदर्शनी से तुम लोगों ने क्या-क्या ख़रीदा?

    सुजाता : हमने असम और नागालैंड के बने दो बैग ख़रीदे। बत से बना हुआ, फूलों वाला गमला और बाँस से बना टेबल लैंप रंजना के लिए ख़रीदे। रंजना ने अपने लिए राजस्थान के कढ़ाईवाले कपड़े और बंगाल के पवेलियन से एक जूट का थैला ख़रीदा। उसने जम्मू-कश्मीर के मंडप से अपनी माता जी के लिए एक शाल ख़रीदी। 

    सलमा : रंजना मुंबई कब लौटेगी?

    सुजाता : अगले सप्ताह के बाद।

    सलमा : क्या तुम दोनों कल मुझे साथ लेकर प्रगति मैदान चल सकती हो? 

    सुजाता : कल रविवार है सलमा! छुट्टी के दिन भीड़ बहुत होती है। हम किसी दूसरे दिन चलें तो आराम से प्रदर्शनी देख सकेंगे।

    स्रोत :
    • पुस्तक : दूर्वा (भाग-1) (पृष्ठ 97)
    • प्रकाशन : एनसीईआरटी
    • संस्करण : 2022

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